back to top
25 नवम्बर, 2024
spot_img

दरभंगा के जाले में संत शिरोमणि श्रीजी महाराज ने कहा, जटा-जूट धारी, ज्ञान-विहीन-पाखंडी-अज्ञानी क्षद्मभेषी साधुओं से बचें

spot_img
spot_img
spot_img

जाले,देशज टाइम्स। आत्मा का श्रवण करो, मनन करो तथा ध्यान करो। आत्मा के विज्ञान जानने से सब विज्ञात हो जाता है। यह उद्गागर संत शिरोमणि श्रीजी महाराज ने मंगलवार को जालेश्वरी मंदिर परिसर स्थित महावीर स्थान में एक दिवसीय संत समागम को संबोधित करते हुए कही।

उन्होंने जटा-जूट धारी, ज्ञान-विहीन-पाखंडी-अज्ञानी क्षद्मभेषी साधुओं से बचने को कहा। उन्होंने कहा कि आत्मतत्त्व का श्रवण श्रुति-वाक्यों के द्वारा करना चाहिए। मनन तार्किक युक्तियों से करना चाहिए। योग प्रतिपादित उपायों की ओर से उसका निदिध्यासन यानी ध्यान करना चाहिए।

ये ही दर्शन के लिए हैं। भारत में धर्म और दर्शन में अविच्छेद्य मैत्री रही है। दर्शन का आविर्भाव ही इसलिए है कि वह तीनों तापों से संतप्त जन की शान्ति के लिए, क्लेश बहुल संसार से निवृत्ति पाने के लिए, सुंदर तथा निश्चित मार्ग का उपदेश देता है।
दर्शनशास्त्र की ओर से सुचिन्तित आध्यात्मिक तथ्यों के ऊपर ही भारतीय धर्म की प्रतिष्ठा है। वेद पर उन्होंने कहा की धर्म और दर्शन, दोनों के मूल आधार वेद ही हैं। दर्शन विचारों का प्रतिपादक है और इन्हीं विचारों के अनुसार आचारों की व्यवस्था करना धर्म का काम है।
दर्शन सिद्धान्त प्रतिपादक है तो धर्म व्यवहार प्रदर्शक है। बिना धार्मिक आचारों द्वारा कार्यान्वित हुए दर्शन की स्थिति निष्फल है और बिना दार्शनिक विचारों की ओर से परिपुष्ट हुए धर्म की सत्ता अप्रतिष्ठित है। आत्मदर्शन जैसे भारत में दर्शन का लक्ष्य है, उसी प्रकार वह परम धर्म भी है।
मनु और याज्ञवल्क्य आत्मदर्शन को ही परम धर्म मानते हैं। केवल तर्क से, श्रुतिविहीन कल्पना से, किसी तथ्य का ठीक निर्णय नहीं हो सकता। इसलिए श्रुति का आश्रय सदा आदरणीय है। अपने विश्वविश्रुत अमर ग्रंथ वाक्यपदीय “ में भर्तृहरि ने कहा है। विभिन्न आगमों के दर्शनों के द्वारा प्रज्ञा विवेक को प्राप्त करती है।
अपने ही तर्कों के अनुधावन करने से व्यक्ति किन-किन तत्त्वों का उन्नयन कर सकता है, उसके तर्कों का नियंत्रण तो कहीं होना ही चाहिए, नहीं तो गन्तव्य से वह कहीं दूर भटक जायेगा। इसलिए पुराणों तथा आगमों के बिना तत्-तत् उत्प्रेक्षा करने वालों तथा वृद्धों की उपासना न करने वालों की विद्या कोई बहुत प्रसन्न नहीं होती।
श्रुतिहीन तर्क का कोई प्रामाण्य नहीं होता। यहां वृद्धों से तात्पर्य आप्त जनों और अनुभवी जनों से है। इस मौके पर मिथिलांचल के जाने माने संतों ने श्रीजी महाराज के ज्ञान से लेकर प्रस्थान किए।
--Advertisement--

ताज़ा खबरें

Editors Note

लेखक या संपादक की लिखित अनुमति के बिना पूर्ण या आंशिक रचनाओं का पुर्नप्रकाशन वर्जित है। लेखक के विचारों के साथ संपादक का सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित। देशज टाइम्स में प्रकाशित रचनाओं में विचार लेखक के अपने हैं। देशज टाइम्स टीम का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है। कोई शिकायत, सुझाव या प्रतिक्रिया हो तो कृपया [email protected] पर लिखें।

- Advertisement -
- Advertisement -