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1 अक्टूबर, 2024
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सच बोलने वाले…प्रगतिशील आवाज… मशहूर लेखक तारिक फतेह नहीं रहे

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पाकिस्तानी मूल के मशहूर लेखक तारिक फतेह का निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनकी उम्र 73 थी। बेटी नताशा ने उनके निधन की पुष्टि की है।

इससे पहले रविवार को, ट्वीट कर नताशा ने लिखा था,पिता के साथ एक स्लो संडे की सुबह का आनंद ले रही हूं। पुराने बॉलीवुड गाने सुन रही हूं और मैं भारत माता के प्रति हमारे साझा प्रेम के लिए नारंगी रंग की पोशाक पहन रही हूं।

फतह इस्लाम पर अपने प्रगतिशील विचारों और पाकिस्तान पर उग्र रुख के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अक्सर भारत में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को अपना समर्थन व्यक्त किया। 1949 में जन्मे फतह 1980 के दशक की शुरुआत में कनाडा चले गए और कनाडा में एक राजनीतिक कार्यकर्ता, पत्रकार और टेलीविजन होस्ट के रूप में काम किया और कई किताबें लिखीं।

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तारिक फतेह का परिवार मुंबई का रहने वाला था। 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो  उनका परिवार पाकिस्तान के कराची में जाकर बस गया। जहां 20 नवंबर साल 1949 को कराची में तारिक फतेह का जन्म हुआ।
मशहूर लेखक तारिक फतेह ने कराची यूनिवर्सिटी से बायोकेमिस्ट्री की पढ़ाई की थी, लेकिन बाद में उन्होंने पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया।

उन्होंने एक पाकिस्तानी टीवी चैनल में काम किया। उससे पहले 1970 में वे कराची सन नाम के अखबार में रिपोर्टिंग करते थे। खोजी पत्रकारिता के कारण वे कई बार जेल भी गए। हालांकि बाद में तारिक पाकिस्तान छोड़ कर सऊदी अरब चले गए। जहां से 1987 में वे कनाडा में बस गए।

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नताशा ने ट्वीट किया, ‘पंजाब के शेर, हिंदुस्तान के बेटे, कनाडा के प्रेमी, सच बोलने वाले, न्याय के लिए लड़ने वाले, दलितों और शोषितों की आवाज तारिक फतेह अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका काम और उनकी क्रांति उन सभी के साथ जारी रहेगी, जो उन्हें जानते और प्यार करते थे।

तारिक फतेह की पहचान पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक प्रसारक और सेक्युलर उदारवादी कार्यकर्ता के रूप में थी। वे इस्लामी अतिवाद के खिलाफ मुखर होकर बोलते और लिखते रहे।

चेजिंग अ मिराज : द ट्रैजिक इल्लुझ़न ऑफ़ ऐन इस्लामिक स्टेट (Chasing a Mirage: The Tragic Illusion of an Islamic State) उनकी प्रसिद्ध कृति है।

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वे समलैंगिक व्यक्तियों के सामान अधिकारों और हितों के भी पक्षधर थे। इसके साथ ही बलूचिस्तान में मानवाधिकार के हनन पर भी उन्होंने खूब लिखा और बोला। वे आजाद बलूचिस्तान के पक्षधर के रूप में भी जाने जाते थे।

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