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18 अगस्त, 2024
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Supreme Court का Supreme फैसला, अब पति-पत्नी को तलाक चाहिए ही तो Divorce में 6 महीने का भी इंतजार नहीं

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तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का एक बड़ा फैसला सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि जहां रिश्तों में सुधार की गुंजाइश न बची हो, ऐसे मामलों में तलाक (Divorce) को मंजूरी दे सकता (Supreme Court’s Supreme decision, no waiting even 6 months in Divorce) है।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि संविधान के आर्टिकल 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ऐसी मंजूरी दे सकती है।

विवाह के निश्चित तौर पर टूट चुके मामलों में कपल को जरूरी वेटिंग पीरियड का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। मौजूदा विवाह कानूनों के मुताबिक पति-पत्नी की सहमति के बावजूद पहले फैमिली कोर्ट्स (Family Court) एक समय सीमा तक दोनों पक्षों को पुनर्विचार करने का समय देते हैं।

जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, एएस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने कहा कि ‘हमने ऐसे कारक भी निर्धारित किए हैं जो यह तय कर सकते हैं कि विवाह कब पूरी तरह से टूट चुका है।

बेंच ने यह भी बताया है कि विशेष रूप से रखरखाव, गुजारा भत्ता और बच्चों के अधिकारों के संबंध में हितों को कैसे संतुलित किया (Supreme Court’s Supreme decision, no waiting even 6 months in Divorce) जाए।

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथियों के बीच दरार नहीं भर पाने के आधार पर वह किसी भी शादी (Supreme Court’s Supreme decision, no waiting even 6 months in Divorce) को खत्म कर सकता है।

SC ने साफ कहा कि पार्टियों को फैमिली कोर्ट भेजने की जरूरत नहीं है, जहां उन्हें 6 से 18 महीने तक का इंतजार करना पड़ (Supreme Court’s Supreme decision, no waiting even 6 months in Divorce) सकता है।

अगर पति-पत्नी जल्दी तलाक चाहते हैं तो वे शादी को खत्म करने के लिए आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट जा (Supreme Court’s Supreme decision, no waiting even 6 months in Divorce) सकते हैं

आर्टिकल 142 की उपधारा 1 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार दिए गए हैं। इसके जरिए शीर्ष अदालत अपने सामने आए किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिए आवश्यक आदेश दे सकती है।

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13बी में पारस्परिक सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया बताई गई है। सेक्शन 13(बी) 1 कहता है कि दोनों पार्टियां जिला अदालत में अपनी शादी को खत्म करने के लिए याचिका दे सकती हैं।

इसमें आधार यह होगा कि वे एक साल या उससे भी अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं या वे साथ नहीं रह सकते या पारस्परिक तरीके से शादी को खत्म करने पर सहमत हुए हैं।

सेक्शन 13 (बी) 2 में कहा गया है कि तलाक चाहने वाली दोनों पार्टियों को अर्जी देने की तारीख से 6 से 18 महीने का इंतजार करना होगा। छह महीने का समय इसलिए दिया जाता है जिससे मान-मनौव्वल का समय मिले और वे अपनी याचिका वापस ले सकें।

जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने साफ कहा कि SC को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इसका अधिकार है। यह आर्टिकल शीर्ष अदालत के सामने लंबित किसी भी मामले में ‘संपूर्ण न्याय’ के लिए आदेश से संबंधित है।

यह फैसला 2014 में दायर शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन केस में आया है, जिन्होंने भारतीय संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक मांगा था।

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