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प्रवीण गोविन्द, पॉलिटिकल एडिटर।प
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प्रवीण गोविंद । समकालीन हिंदी पत्रकारिता के उन लेखकों में हैं, जो समाज को सिर्फ खबर की नजर से नहीं, मनुष्य की दृष्टि से देखते हैं। लेखनी में रिश्तों, मूल्यों और लोकतंत्र के संतुलन को संवेदनशीलता, विवेक से अभिव्यक्त करते हैं। इनके शब्दों का उद्देश्य आलोचना नहीं, समाज को उसके भीतर झांकने की प्रेरणा देना है। इनकी शैली में भावनाओं की कोमलता, विचारों की दृढ़ता का दुर्लभ संगम है।
सत्ता का अहंकार और लोकतंत्र की मृत्यु…कुर्सी की भूख बनाम नागरिक का हित…जब नेता ‘जनसेवक’ नहीं, ‘राजा’ बन जाता है
लोकतंत्र में सत्ता जनता की सेवा के लिए एक उपकरण मात्र होती है, न कि किसी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति का मंच। लेकिन आज,...
मिथिलांचल: जहां दीवारों पर बोलती है आस्था, और गीतों में गूंजता है जीवन
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थिलांचल की पहचान उपजाऊ भूमि, मखाना उत्पादन, अद्वितीय कला, और समृद्ध साहित्यिक धरोहर से होती है। यह वह भूमि है जहां ज्ञान, भक्ति, और...
कोसी-मिथिलांचल में राजनीति का अपराधीकरण: लोकतंत्र पर बढ़ता ग्रहण
कोसी और मिथिलांचल, जहां की समस्याओं का मूल कारण बाढ़ और विकास की उपेक्षा है, वहां की राजनीति में अपराध और धनबल (Money and...
मिथिलांचल की राजनीति…उपेक्षा – विमर्श और आकांक्षा
मिथिलांचल, भारत का वह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है जिसकी पहचान केवल विद्या की देवी सरस्वती और जनक की नगरी तक...
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