

यही हालात हैं शहर के। नगर निगम के वश का नहीं रहा एक-एक कूड़े को चुन-चुनकर उठा लेना। एक तरफ लोग मानने को तैयार नहीं, दूसरी ओर निगम के अधिकारी हैं मानकर बैठे हैं कचरा तो रहेगा ही। कुछ लोग उठते हैं खुद कुदाल उठाते हैं सफाई दिखती है मगर चंद सिमटते जगहों तक ही। भले निगम कहे हर खास व आम को सूचित करे कि मैं इन दिनों कूड़ा नहीं फेंकता सफाई में व्यस्त हूं ,जब सब कर रहें हैं तो मैं क्यों पीछे रहूं जी मैं सफाई की नहीं कूड़ा जगह-जगह फेंकने की बात कर रहा। लोग यही सोच रहे जो होगा सो देखा जाएगा। वैसे सरकार को कुछ दिखता नहीं है। सब आंखों पर पट्टी बांध कर बैठे हैं। फिर भी यदि किसी को कुछ दिख जाएगा तो चांदी का जूता काम करेगा। इस जूते में हैं बड़े बड़े गुण। हर शहर, गांव, सड़क,वन सब में गंदगी व कूड़े की पूरे शहर में छाई बहार है, जिसमें जितनी हिम्मत हो उतना गंदगी कर लो खूब फेकों सड़क पर दूसरे ने गंदगी फैलाया तू क्यों रोना रोने के बजाए खुद भी कहीं गंदगी कर लो। मुझे एक सरकारी कारिंदे ने समझाया था, जब मैं शिकायत लेकर गया था, उसने यह भी कहा कि सड़कों पर गंदगी फेंकने के लिए शेर सा दिल नहीं बकरी सा दिल ही काफी है अरे चिड़िया के दिल वाले नगर निगम के अधिकारी क्या खाकर गंदगी साफ करेंगे।









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