

शहर में यातायात सुधार की बात कई बार हुई। हर बार विफल रही। कोई सुधरने को तैयार नहीं कोई कुछ मानने को कतई तैयार नहीं। जो जिधर दिखता है उधर से ही निकल जाता है। नियम, कायदे कानून सब ताक पर हैं क्योंकि हर कोई जल्द में है। कई बार कहा, नहीं मचाओ जल्दी इतना।दुर्घटना भी हो सकती है। लापरवाही सड़कों पर की। बीज मौत के बो सकती है। मगर सुनता, समझता, समझने को तैयार कौन है। क्या मजबूरी भाग रहे हो। है तेरे लिए यह सड़क सुरक्षा। सीट बेल्ट व हेलमेट पहनो। भागने से तो है ये अच्छा। मगर, हालात देखिए। मोबाइल पर बात न करना। तेज ध्वनि में न गाने सुनना। अपनी दिशा से चलो सड़क पर। गलत दिशा तुम कभी न चुनना। मगर ये किस्से हैं जिसे लोग सुनते, पढ़ते हैं और भूल जाते हैं सड़क पर आकर उसी गलती को दोहराते हैं। ये आम दिन हैं सड़क पर फ़ोन बजता है सैंकड़ों वाहनों के बीच बातें करते हैं हम जीवन के रंगों की बातें हैं दफ्तर के रंग बच्चों के रंग किसे पता कि अगले ही पल मौत है सामने मगर फर्क कहां किसी पर पड़ता है। सड़क पर सोलह दिशाओं से वाहन आते हैं, एक सौ अट्ठाइस गलियों में, खड़ा है ईश, क्या करें उन बीस का जो ज़्यादा हैं ईश के नाम, शायद वही हैं यम के धाम। ऐसे में, शहर के हालात मत पूछिए। सोचा था निजाम बदलते ही बदल जाएंगे अंजाम भी मगर यहां तो गुम हूं देखकर मंजर अभी। क्या कहूं, देखने सूरत गया था आइने के सामने आईना रोने लगा हालत हमारी देखकर…।










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