

खास व आम को सूचित किया जाता है कि इन दिनों पूरे शहरवासी अतिक्रमण करने में व्यस्त हैं। हमारे पड़ोसी भी सुबह पहुंचे कहा, जब सब कर रहें हैं तो मैं क्यों पीछे रहूं जो होगा सो देखा जाएगा। मैंने कहा, कुछ नहीं होगा आप भी शौक से करें अतिक्रमण। वैसे भी सरकार को कुछ दिखता नहीं है। सब आंखों पर पट्टी बांध कर बैठे हैं। फिर भी यदि किसी को कुछ दिख जाएगा तो चांदी का जूता काम करेगा। इस जूते में हैं बड़े बड़े गुण। हर शहर,गांव,सड़क, वन सब में अतिक्रमण की छाई बहार है, जिसमें जितनी हिम्मत हो उतना अतिक्रमण कर ले। दूसरे ने अतिक्रमण कर लिया यह रोना रोने की बजाए खुद भी कहीं अतिक्रमण कर लो। मैंने पड़ोसी से कहा, मुझे एक सरकारी कारिंदे ने समझाया था, जब मैं शिकायत लेकर गया था, उसने यह भी कहा कि अतिक्रमण के लिए शेर सा दिल व जेब भरी होनी चाहिए। चिड़िया के दिल वाले क्या खाकर अतिक्रमण करेंगे। जीहां, हालात यही है, आओ पहाड़’ मैंने नहीं कहा, कहा पहाड़, मैं आ रहा हूं। पहाड़ मुझे देखे इसलिए उसके सामने खड़ा, उसे देख रहा हूं। पहाड़ को घर लाने, पहाड़ पर एक घर बनाऊंगा, रहने के लिए एक गुफ़ा ढूंढूंगा, या पितामह के आशीर्वाद की तरह, चट्टान की छाया, कहूंगा यह हमारा पैतृक घर है यही तो अतिक्रमण है। बदतर व्यवस्था में मुंह दिखाने लायक नहीं हैं अधिकारी, हम तो यही कहते दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहां मत आओ, इस शहर में तन्हाई भी अतिक्रमण में मर जाती है ।









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