

हां डंके की चोट पर कहता हूं,मैं भिखारी हूं। मेरे पेशे का नहीं होता है कोई सरकारी पंजीकरण। न कोई विभाग ही बना है जो, रोके हम लोगों का अवतरण। न मैं प्राइवेट ही हूं न कोई, कर्मचारी सरकारी हूं। हां मैं भिखारी हूं, सभ्य समाज की लाइलाज, बीमारी हूं मगर समाज से लेकर अधिकारी,प्रशासन, सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म करने की कहीं कोई योजना नहीं बनाई आज भी रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड समेत सभी सार्वजनिक जगहों पर इनकी फौज है। हालात यही है, बदन के घाव दिखा कर जो अपना पेट भरता है, सुना है, वो भिखारी जख्म भर जाने से डरता है।










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