

दरभंगा डीएमसीएच पहले से शमशान बना था ऊपर से एम्स भी हाथ से गया। डीएमसीएच में मरीजों की हालत ऐसी मानों जख्म पर मरहम नहीं नमक की खेती हो जैसी। हालात यही है, रामघाट पर सुबह गुजारी, प्रेमघाट पर रात कटी, बिना छावनी बिना छपरिया, अपनी हर बरसात कटी, देखे कितने महल दुमहले, उनमें ठहरा तो समझा, कोई घर हो, भीतर से तो हर घर है वीराना रे। ऐसे में, वरीय डॉक्टरों को मरीजों से मतलब नहीं। जूनियरों का हर वक्त अस्पताल में हंगामा ही दिखता है। अब तो मरीज के परिजन भी जान गए हैं यहां आने का मतलब मरीज के साथ दवाई और हाथ में लठ व लाठियां लेकर ही पहुंचो तो भला है। शर्मनाक हालात पर है डीएमसीएच जहां मरीजों का शोषण करने पहुंचते हैं निजी अस्पतालों के दलाल और कमिशन के खेल में डॉक्टर भी कर देते रेफर। हालत यह, शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है , जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है। झूठ से भरोसा टूटता है और लोग परेशान होते हैं, बिखरते हैं, टूट जाते हैं। ऐसे में दादा कहिन, सीख रहा हूं मैं भी अब मीठा झूठ बोलने का हुनर, कड़वे सच ने हमसे, ना जाने, कितने अज़ीज़ छीन लिए। डॉक्टर यहां बेइमान हैं। कभी खांसी कभी जुकाम हैं। कहो ना बुखार है टीबी नं.1 कल मरीज हो ना हो हम ब्लड दे चुके सनम के हालात हैं। निदंनीय, घोर शर्मनाक।









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