

शहर के गैस एजेंसी मालिकों की चांदी है। सरकार उन्हें खुली छूट दे चुकी है कि उपभोक्ताओं का जितना जी भर चूस सको तो चूसो सो हो वही रहा है। उपभोक्ता खाता में पैसा लेने के चक्कर में लोग न घर के रहे ना घाट के। फिलहाल लग्न के मौसम में गैस के लिए हाहाकार है। आज लाइन में लगो कल मिलेगा सो, रहिमन देख दिनन के फेर।
एक आदमी पेट काट कर, अपना घर चलाता है..खून पसीना बहा बहा कर , मेहनत की रोटी खाता है..। खुद भूखा सो जाये पर, बच्चों की रोटी लाता है..। तू उनसे छीन निवाला, जाने कैसे जी पता है.। शहर के हालात यही हैं, दादा कहिन, सुनते वहीं है जिसमें उनकी अपनी भलाई हो, कहते वहीं हैं जिसमें उनकी अपनी कमाई हो…।










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