
शहर में ट्रैफिक की हालत काफी लचर, लुंज-पूंज हो चुकी है। यह बात आज की नहीं है सदियों से है। बीच-बीच में कुछ अधिकारियों की इच्छा शक्ति पर स्थिति सुधरती दिखी मगर सिर्फ हलकानी तक ही। कागजों पर या फिर अखबारों में जमीन पर कभी नहीं दिखी। इसकी मुख्य वजह यहां की ट्रैफिक पुलिस है जो पोस्ट पर कम वसूली पर अधिक निर्भर है। यही वजह है दिन में तो कम लेकिन रातों को इनकी हरकत शर्मसार करने वाली हो जाती है। कहते हैं, हर कदम पर आजमाती है किस्मत जब इन्सां सफर पर हो चालान फौरन काटते हैं गर हेलमेट न सर पर हो, रेत को मुश्किल है मुट्ठी में भर के उड़ा देना, साले भिखारी गाड़ी अब कचहरी से छुड़ा लेना लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कि यह भिखारी है कौन अमूमन यह समझ से परे रहा है। आम आदमी या फिर पुलिस वाले कारण,
ट्रैफिक पुलिस का
वह सिपाही
अपने साफ-सुथरे और
चमाचम सफेद कपड़ों में
शहर के व्यस्त चौराहे में
सड़क से कुछ ऊंचा खड़ा
आने-जाने वालों को
अपने संकेतों से बताता रहता है
कि किसे कब रूकना है
और कब-गति बढ़ाकर
आगे बढ़ जाना है। बताता कम वसूली में ज्यादा व्यस्त रहता है। मगर सवाल फिर वही आखिर इसपर नकेल कसेगा कौन…दादा कहिन
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