समय के साथ तमाम परिभाषाएं बदल जाती हैं। पहले दूरी का मात्रक मील व किलोमीटर हुआ करता था। फ़िर घंटे व दिन हुआ। इधर जाम ने दूरी के सारे मात्रकों का हुलिया बिगाड़ के धर दिया है। हर मात्रक में जाम का हिस्सा शामिल हो गया है। अगर जाम नहीं मिला तो आधा घंटा। अगर जाम मिल गया तो खुदा मालिक। जाम ने दुनिया की सारी दूरियां बराबर कर दी हैं। आप हो सकता है कि दरभंगा से लंदन जित्ते समय में पहुंच जाएं उत्ते समय में जाम की कृपा से दरभंगा से पटना न पहुंच सकें। दादा कहिन, शहरों में रहने वाले लोग जाम से उसी तरह डरते हैं जिस तरह शोले फ़िल्म में गांव वाले गब्बर सिंह से डरते थे। शहरातियों की जिंदगी में ट्रैफ़िक-जाम उसी तरह् घुल मिल गया है जिस तरह नौकरशाही में भ्रष्टाचार।
जाम से हम उसी तरह डरते हैं जैसे शोले में गांव वाले गब्बर सिंह से डरते थे…हे सरकार
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