है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है, कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है। शहर का मिजाज बदतर हालात में हैं। स्थिति यह, अपने मन में अक्सर सोचा करता हूं कई बार, अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार, नेता अधिकारी सारे क्यों हैं मालामाल। मेहनतकश व मज़दूर देश का हो गया कंगाल, मैंने देखा इंसानियत को बिकते बीच बाज़ार, अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार।
बचपन में पापा कहते थे ईश्वर भाग्य विधाता है, जन्म देने वाली मां से बढ़कर अपनी भारत माता है। आज ईमानदार और सत्यवादी बहुत हो चुका लाचार,कभी तो मानव जागेगा लिए बैठा यही आस, करेगा सो भरेगा तू क्यों है बब्बर उदास
साई कहते इस जग में मतलब का व्यवहार, अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार। व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है। भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है।
मुनाफाखोरी की बीमारी लगी सभी को महंगाई से जनता त्रस्त हो गई तभी तो न्याय मिलने में देरी हो रही है। राष्ट्रीय संपत्ति चोरी हो रही है, व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है।सड़कों का हाल बेहाल है। चोरों का अड्डा तो पुलिस चौकी है, व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है। भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है। नौकरशाही सब पे भारी है। हर एक को रिश्वतखोरी की बीमारी है।
भ्रष्ट लोगों के खिलाफ जो आवाज़ उठाता है, बहुत जल्दी ही आवाज़ दबा दिया जाता है। व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है, भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है।





You must be logged in to post a comment.