सरकारी व्यवस्था में आम जन की बात होती है लेकिर हर वक्त आम लोग ही सरकारी व्यवस्था के कोपभाजन बनते हैं। सरकारी सिस्टम के बारे में सोचने पर ही उससे मुक्त, दूर रहने में ही भलाई दिखती है। कारण, हर सरकारी दफ्तर में घोटालों, भ्रष्टाचारियों की बादशाहत चलती है। दलालों की चांदी दिखती है। ऐसे में, सौ बरस भी करते रहोगे खोज तो, एक घोटाला न कहीं तुम ढूंढ पाओगे। पीढ़ियां लग जाएंगी इस खोज में, और फिर भी ढूंढ़ते रह जाओगे। यारों, मत उछालो बात अब घोटालों की, घोटाले तो सचमुच कहीं होते नहीं। आम-जन का हुआ यह विश्वास दृढ़, बात यह ही है सही, कही-अनकही। हमनें कई दफ्तरों को टटोला तो यही पाया, हमारी चिंतनशील उदार न्याय व्यवस्था में, हर जांच है एक बीस वर्षी योजना। बस यही एक सजा है आरोपी अपराधी की, इस अवधि में है उसे सोना मना। अब बदल दो नाम इन घोटालों का, कहो इनको ‘मार्जिनल एडजस्टमैंट, ये घोटाले तो हैं बड़े पदों की कुर्सियों के पाये, छोटी मछलियां ही फंसेंगी जाल में,उनको तो सब भून कर खा जाएंगे। बड़ी मछलियों का तो है समुंदर पे राज, पकड़ने वाले जाल ही फट जाएंगे।
- Advertisement -




You must be logged in to post a comment.