स्कूलों में मिड डे मिल के नाम पर लूट मची है। स्कूल के प्रिसिंपल मालामाल हो रहे। उनके कर्ता-धर्ता नेहाल हो रहे। मगर स्कूल व वहां के बच्चों की हालत यथावत है। पुराने फटे से टाट पर, स्कूल के पेड़ के नीचे, बैठे हैं कुछ गरीब बस्ती के बच्चे, कपड़ों के नाम पर पहने हैं, बनियान व मैली सी चड्डी,उनकी आंखों में देखे हैं कुछ ख्वाब, कलम को पंख लगा उड़ने के भाव, उतर आती है मेरी आंखों में, एक बेबसी, एक पीड़ा, तोड़ना नहीं चाहती, उनका ये सपना, उन्हें बताऊं कैसे, कलम को आजकल, पंख नहीं लगते, लगते हैं सिर्फ पैसे, कहां से लाएंगे, कैसे पढ पाएंगे, उनके हिस्से तो आएंगी, बस मिड -डे मील की कुछ रोटियां, नेता खेल रहे हैं अपनी गोटियां, इस रोटी को खाते-खाते, वो पाल लेगा अंतहीन सपने, जो कभी ना होंगे उनके अपने, फिर वो तो सारी उम्र, अनुदान की रोटी ही चाहेगा और इसलिए नेताओं की झोली उठाएगा। काश! कि इस देश में हो कोई सरकार, जिसे देश के भविष्य से हो सरोकार। काश सरकार बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देती तो ये नौबत नहीं आती। जिस प्रदेश के शिक्षकों को देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति का नाम नहीं मालूम वो कैसा भविष्य नव देश नवभारत का निर्माण करेंगे ठीक वैसे ही जैसे मध्याह्न भोजन में छिपकिली, कंकड़ मिलना हर स्कूल की पहचान में आज शामिल है। बच्चे हैं खाकर जिंदगी दांव पर लगा रहे मगर सरकार है कुछ समझने को तैयार नहीं।
फिर वो तो सारी उम्र अनुदान की रोटी ही चाहेगा, हर दिन नेताओं की झोली ही उठाएगा
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