अगर अधिकारी भी कोई आम आदमी होते उनके घटने पर, भीड़ उमड़ पड़ती, पुलिस हाकिम का पीछा करती, अधिकारी भागते-भागते बेदम हो जाते, तब वे रइसी भरी एसी कार्यालय में न होकर, फरार फिरते या, अपने-अपने घरों में, नज़रबंद होते जी हां यही कहानी है हर उस सड़कों का जहां जाम आज आम बात हो गई है। तय मानिए हम किसी सफर में नहीं हैं, कोई पहाड़ी, नदी या बाग नहीं, हम शहर के बीच हैं और आदमियों के साथ वाहनों से घिरे हैं। धुंआ खा रहे हैं। धुल फांक रहे हैं साहेब हम तो आम आदमी हैं आपकी तरह एसी कक्ष में बैठने वाले कोई हाकिम नहीं कि जाम से बच जाएंगे हम तो वो हैं जिसे हमारे दादा ने कहा था, एक बार सही गलियों से निकल अनगिनत लोग सड़क पर इकट्ठे हो एक साथ, गाने लगेंगे कि जाम का इंद्रधनुष खिल उठा है कि जर्जर बलवान व
खूंखार मेमने बन गए हैं दादा ने फिर बिगुल बजाया, तुम सावधान हो जाओ गुरु… सड़क पर तुम सावधान हो जाओ…
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