सुशासन की हवा निकल चुकी है। शहर के लोगों को जो जहर समझ आहिस्ता-आहिस्ता लूट रहे थे, अपराधियों ने उन्हें खुलेआम लूट लिया। जख्म के नाम पर जो अपना कारोबार चमका रहे उनसे सुशासन के एक अधिकारी ने थोड़ा मांग ही लिया साहेब को नागवार गुजर गया पहुंच गए विजिलेंस में। शहर के स्कूलों में फीस के नाम पर, दुकानों में स्कूल की वर्दी के नाम पर, ट्यूशन नहीं पढ़ने पर छात्र से खुन्नस के नाम पर, साहेब यहां के शिक्षक ऐसे हैं छात्रों से इस बात की घूस लेते हैं, तुम ऐश करने जाओ तुम्हारे पापा का फोन आएगा कह दूंगा तुम मेरे साथ थे…ये है यहां की शिक्षा व्यवस्था, यहां की स्वास्थ्य, यहां की व्यापारिक व्यवस्था जो आज खुलेआम बिक चुका है और उसमें पिस कौन रहा है वही आम आदमी जो स्कूल में खुलेआम गुंडागर्दी के आगे नतमस्तक है, शिक्षक से ट्यूशन नहीं पढ़ पाने से बेबस अपने बच्चों के सामने लाचार उस शिक्षक की दादागीरी भोग रहा है। उस व्यवस्था के आगे लाचार है जो सुशासन की कोख में दबकर कब का मर चुका है…
नेक कामों में कभी देर ना कीजिए
साहिब देर होती है तो होती ही चली जाती है…
साहिब देर होती है तो होती ही चली जाती है…
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