दरभंगा, देशज टाइम्स। दरभंगा में वाहनों से वसूली का धंधा कम नहीं हो रहा है। पत्रकार हैं कि मानने को तैयार नहीं है। ऐसे में पुलिस से लेकर पत्रकारों की छवि धूमिल हो रही है। इसका समाधान कौन और कैसे करेगा यह समझ से परे है। स्पृश्यता, नस्लवाद, धर्म और जाति की दीवारें मजहब के बवंडर और खून के फौव्वारे मेरे घर के अभिन्न अंग हैं मेरे दिल में उठती हुई तरंग है लेकिन अब मैं गा रहा हूं
यह गीत जिससे रूढ़िवादी है भयभीत आदमी को जीने का दो अधिकार अस्पृश्यता और नस्लवाद का करो प्रतिकार लिख-पढ़कर सभ्य समाज का बनो अंग जाति-पात और धर्म व्यवस्था को करो भंग बनो सभ्य समाज के सभ्य व्यक्ति जिसमें जिंदा रह सके अभिव्यक्ति आदमी का आदमी से हो प्यार भाईचारा और इंसानियत का बना रहे व्यवहार तब सुनाई पड़ेगी परिवर्तन की आगाज व्यक्ति और समाज की जो रखेगी लाज।
सड़कों का हाल बेहाल है दूर दूर तक न कोई अस्पताल है सरकार आँखे मूंदे बैठी है चोरो का अड्डा तो पुलिस चौकी है व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है नौकरशाही सब पे भारी है हर एक को रिश्वतखोरी की बीमारी है
भ्रष्ट लोगो के खिलाफ जो आवाज़ उठाता है बहुत जल्दी ही आवाज़ दबा दिया जाता है व्यवस्था परिवर्तन का समय आ गया है
भ्रष्टाचार पूरी तरह छा गया है।
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