शहर का माहौल बेहद अफसोसजनक है। कहीं भी किसी भी सरकारी या निजी स्कूलों के बाहर बेटियां आज सुरक्षित नहीं हैं। सुरक्षा के कोई साकारात्मक इंतजाम भी पुलिस विभाग की ओर से माकूल नहीं है। हालात यह, फूलों सी कोमल हृदय वाली होती हैं बेटियां,मां-बाप की एक आह पर ही रोती हैं बेटियां मगर यहां हाल यह जो बेटी भाई के प्रेम में खुद को भुला देती हैं अक्सर, फिर भी आज गर्भ में जान खोती हैं बेटियां और बच गई तो स्कूल के बाहर मनचलों की भेंट चढ़ जाती हैं हमारी बेटियां।
बेटी भार नहीं, है आधार, जीवन हैं उसका अधिकार, शिक्षा हैं उसका हथियार यह बात हम भूल गए मगर हमारी आपसे अपील देशज टाइम्स के माध्यम से दादा कहिन,बढ़ाओ कदम, करो स्वीकार. जरूरी नहीं रौशनी चिरागों से ही हो, बेटियां भी घर में उजाला करती हैं। मगर बेबस शहर को यह क्या हो गया है। हमारी बेटियां हमें पुकार, ललकार रही। साफ शब्दों में हमें धिक्कार रही… उसकी मृत काया मानो चीख—चीख कर एक ही गुहार लगाती हो…कि तभी आग लगाना इस शरीर को जब सुला दो इन लड़कियों में उन दरिंदों को और दिला न पाए इंसाफ मुझे, तो सड़ जाने देना इस शरीर को …क्योंकि जल तो गई थी मैं, उसी दिन को…अब क्या जलाओगे तुम इस राख को। होठों पर मुस्कान लिए घर से निकली थी… कि पड़ी नजर शैतानों की… और डूब गई नाव इंसानियत की।




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