मई,19,2024
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दरभंगा में डंडे वाली पत्रकारिता के वायरल सच… सच मानो तो Manoranjan Thakur के साथ

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नोरंजन ठाकुर (Manoranjan Thakur)। दरभंगा ललित नारायण मिथिला विवि में भ्रष्टाचार की जड़ें/कितनी तह तक/जम/ठोस हो चुकी हैं/ उसकी साखें/ कहां-किन अधिकारियों/कर्मियों की शक्लें/ बिगाड़/उजाड़/यहां से गुमनामी की भीख देकर विदा/भेज/ चुकी हैं/ यह आप सब जानते हैं/ इस पर/ कुछ बोलना/ लिखना/ शायद/ अब अखबारों की जगह भी कम छेकती/ ज्यादा गुणगान/ कम पढ़ाई/ ज्यादा सेमिनार/ हर रोज होते कार्यक्रमों की भरमार से ही उजले पन्नों पर काले शब्द उकेरे जा रहे/

मगर/ यहां के इतिहास/उसकी संस्कृति/लाल भूगौल में/ उन वीसी की सूची बेहद लंबी है/ जो भ्रष्टतम सांसों के उखड़ते रिश्तों/ के बीच यहां से मन-मारकर विदा हुए/ विवादों से पुराना नाता उन लाल पत्थरों की हर लकीर में दिखी है/ दिख रही है/ राजभवन की जांच/ उसपर सरकार की पेंच/ राजभवन से खुला पत्र/ उसपर विवाद/ आमने-सामने सरकार और राजभवन/ यह सब आज भी दिख रहा/ पहले भी दिखता रहा है/

याद आते हैं,
एक वीसी साहेब/ पत्रकारिता में मेरी कभी किसी अधिकारी/ कर्मी/ पुलिस या प्रशासनिक पदाधिकारियों से कभी मुलाकात नहीं हुई/ तीस वर्षों से पत्रकारिता का मजदूर हूं/ मगर, किसी से मुलाकात का मौका नहीं लगा/जरूरत ही नहीं समझा/

हां, याद है,
एकबार एक अखबार का बतौर ब्यूरो चीफ/ मामला विज्ञापन का फंस गया/ बाकी अखबारों में विश्वविद्यालय की पूरे पृष्ठ का विज्ञापन लगातार छपा/ मगर, मैं जिस अखबार में कार्य करता था/ उस अखबार को क्वार्टर भी विज्ञापन विवि प्रशासन ने नहीं दिया/ हालात इतने बिगड़ गए/ मुझसे कहा गया/ मनोरंजन जी कुछ कीजिए/ मैं अपने दो वरिष्ठ साथियों के साथ वीसी से मिलने विश्वविद्यालय पहुंचा/ पहली बार पता चला इन लाल कोठरी के इस कोने में वीसी साहेब का चैंबर है/बेहद आलीशान/खैर/ उनसे मुलाकात हुई/ उन्होंने सीधे और स्पष्ट शब्दों में कहा/ आपका अखबार मेरे खिलाफ लिखता है/ लिखे/ मेरा क्या बिगाड़ लेगा/ सही बात है/बात एकदम सोलह आने सच है/एक ईमानदार वीसी को कोई भी अखबार कुछ क्या तनिक भी बिगाड़ नहीं सकता/मगर, मैंने एक उदाहरण दिया/ महज दो पंक्ति में/ और वीसी साहेब खामोश हो गए/ तत्काल उस अखबार को विज्ञापन मिला/अब यह आप भी जानते हैं/आपको पता है/उस वीसी साहेब की कितनी फजीहत कालान्तर में इस विवि के शासन काल में हुई/जाते-जाते उनपर भ्रष्टतम तमंगे लगे/

खैर, यहां मैं बात करना चाहता हूं/
आज छपी एक खबर की/ दरअसल/ यह खबर/ कल सोशल मीडिया पर कुछेक जगहों पर लोगों ने शेयर किया/ मैं उस रिपोर्टर को सलाम करता हूं/ जिन्होंने इस खबर को अखबार के लिए लिखा/ मगर, सच मानिए/ समझ की कमी/ या उस खबर की अहमियत नहीं समझने वाले/ संस्करण इंजार्च/ डेस्क प्रभारी/ प्रादेशिक प्रभारी/ ने उस खबर को कोने में धकेल दिया/यह खबर आज उसी कोने में दबी/मुंहबाए/अपनी दुर्दशा पर है/ जहां शायद ही किसी की एक नजर में नजर पड़े/या पाठक उस खबर की अहमियत को समझ पाए/

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पत्रकारों की जवाबदेही क्या है?
चाहे वह फिल्ड में हो/ या डेस्क पर/ उनकी जरूरत समाज के किस स्तर पर/ कहां-कहां है/ और क्यों है/ यह अब बेहद ही गंभीरता से समझना/ उसपर अमल लाना/ उसकी पैमाइश को बारीकी से जगह देना/ समय की जरूरत है/ कारण, समाज अब पत्रकार की भूमिका में आ रहा है/ हर हाथ में कैमरा/ हर दिमाग में कुछ पोस्ट करने की चाहत/ बेपर्द करने की मंशा…/पत्रकारों के खाली स्पेस को भरने/ उसकी भरपाई करने को तैयार बैठा है/तभी तो वह वीडियो चुपके से बनी/उसे पोस्ट किया गया/ उस पोस्ट करने वाले की मंशा क्या थी/इसे गौर करना होगा/समझना होगा/

 

चाहे/ बात/
सहरसा के उस थानेदार की करें/ जो शराब के नशे में अय्याशी करते/ दैहिक भूख मिटाता कैमरे में कैद हो जाता है/ निलंबन को गले लगाता है/ या फिर उस पत्रकार की बात करें/ जो डंडे वाला है/ कहीं भी/कभी भी पहुंच जाता है/ पीएम मोदी तक को/ यूपी रैली में/ उस डंडे वाले पत्रकार की याद आती है/जो एक बेहद ही बुजुर्ग महिला से बात करता यूपी चुनावी का माहौल टटोल रहा है/ उसपर भरी सभा में भड़ास/ निकालते देखना/ उस पत्रकारिता के एक अलग अंदाज की इशारा भर है/ जो इन दिनों बेइंतहा/ बेतरतीब तरीके से उग आए हैं/वह भी भ्रष्ट तंत्र की बलि चढ़ने के बाद हमारे जैसे ही कहीं अपनी बात रखता, छुपा बैठा है/ मगर, यकीं मानिए/आने वाले वक्त में/ इसमें और तेजी आएगी/सरकार की सांसें इससे जरूर लंबी/बदहवास/ हकलाने जैसी होने वाली है/बारहवीं पास करके जब इंटर में जाओगे लैपटॉप दूंगा…/ इसे समझना भी होगा/ समझाना भी होगा/

खासकर/ अखबार में
काम करने वाले उन जमात के साथियों को/ जो प्रिंट में रात-दिन अक्षर काले करते हैं/ मगर/ काली करतूत को लिखते नहीं/ उन्हें दरकिनार/ पन्ना भरने की महज/ औकात समझते हैं/ इस जमात से/ एक अपील है/ अखबार के हर स्पेस को/ हथियार/ समझने की बारी/ उसका समय आ चुका है/ चूक गए…/गए/

पत्रकार पहले घोटालों/भ्रष्टाचारों पर
मेहनत करते/ लिखते/ उसे रगड़ते/ झल्लाते/ उसकी खिंचाई करते/ कलम खाली कर लेते/ आज उलट है/ यह आप पाठक वर्ग भी जानते हैं/ आज/ घोटाला/ छपते नहीं/ छापने की जरूरत भी नहीं है/ छापे तो कार्रवाई/अगले दिन वही अखबार बैकफुट पर/इसे आपने भी देखा/महसूसा होगा/ इससे/ प्रबंधन कतई ही नहीं चाहता/हां/उसे वाउ खबर जरूर चाहिए/मगर बिना लाग-लपेट/जिससे पाठक संतुष्ठ भी हो/खुद की पीठ थपथपाने का मौका भी मिले/ और सांप मरे भी नहीं/ऐसे में, फिर एक अदना सा पत्रकार/जिसकी नौकरी तलवार पर लटकी है/रहती है/ मेहनत करे क्यों…?/
स्वभाविक है/ करना भी नहीं चाहिए/ जो, मेहनत दिखे नहीं/ उसकी घिसाई बेकार/उसपर सोचना व्यर्थ/

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खैर/
आज यहां बात हो रही है/ दरभंगा के एक खबर की/ इसे कुछेक अखबारों में ब्रीफ में जगह दी गई है/ शायद/ हमारी सोच कुछ भी हो/ उन वरिष्ठ साथियों ने उसे/ वहीं/ उसी कोने में स्थान देना मुनासिब समझा/ शायद यह उनकी सोच थी/ हो सकती थी/ मगर, / उन्हें इस बात का बेहद संजीदगी से ख्याल रखना होगा/ रखना भी चाहिए कि/ अखबार/ पत्रकारों के लिए नहीं छपती/ अखबार आवाम/ उन पाठकों/उस समाज के लिए छपती है/ जो घर बैठे महज एक मूक दर्शक हैं/ जिन्हें पूर्वी विवि महिला टेबल टेनिस प्रतियोगिता के/ पांच कॉलम/दो तस्वीरें/शायद उतनी नहीं जंचती जितनी उस व्यवस्था के भ्रष्ट घास की छिलाई उसकी पुताई उसका सौंदर्यीकरण/ बात/ चाहे/ टीवी पर चलती कोई दृश्य माध्यम हो/ या फिर कागजों की रद्दी बनता कोई अखबार/

आइए, मुद्दों की बात करें
आज एक अखबार पर नजर पड़ी/ सहसा लगा/ पत्रकारिता किस दिशा में है/ कहां-किस तरफ बढ़-चल-पुष्पित हो रहा/इसे कौन चला रहा/ किस मानसिकता के साथ लिखा/ समाज के बीच बांटा/ पढ़ा/बेचा/ जा रहा है/

एक रिपोर्टर ने/जिसकी कमाई इत्ती भर/खुद की पेट ना भरे/ मेहनत की/ उस वायरल की सच्चाई/ आम तक पहुंचाने की जिद ठानी/ उसे शब्दों में उकेरा/ ब्यूरो चीफ भी/ उस खबर को भेजने में कतई कोई गुरेज/कोताही नहीं की/ मगर संस्करण के डेस्क पर जाकर/ वह दम तोड़ता/ कोने में जाकर छप जाता है/रिपोर्टर यह मानकर खुश/चलो/खबर लग तो गई/डेस्क पर रूकी तो नहीं/

जरा सोचिए/
भ्रष्टाचार को उजागर करना हमारा दायित्व ही नहीं, कर्म भी है/ हमारी पैदाइश इसी को लेकर है/ हम उस तंत्र को बेनकाब करेंगे/ जो आज भ्रष्ट की ईद भी है और गिर्द भी/

खासकर/ उस विश्वविद्यालय को लेकर/
जिसके सर्वेसर्वा जांच के घेरे में हों/ बात सरकार/ और राजभवन के बीच अटकी हो/ ऐसे में/ एक खबर पूर्व प्रधानाचार्य की वायरल होती है/ उसी अखबार के मुख्य पृष्ठ पर/ महज ढ़ाई लाख की लूट को प्राथमिकता मिलता/ दिखता है/ एक ऐसी लूट/ जो बिहार के किसी भी कोने में शायद ही किसी दिन ना होती हो/जो पुलिस तंत्र के लिए रूटीन बातें हो चुकी हों/ ठीक है, क्षेत्रीय संस्करण निकालने के लिए क्षेत्रीय खबर को प्रथम पृष्ठ पर स्थान मिलना ही चाहिए/ यह कुशल प्रबंधन की पहली प्राथमिकता/ और सोच रही है/

मगर, जरा सोचिए…/
एक लूट से ज्यादा महत्वपूर्ण खबर आपके पास आज की तारीख में और क्या है/…वह है/ एमआरएम कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य का वह वीडियो जो इन दिनों वायरल है/ इसको अगर/ डेस्क प्रभारी/ किसी भी अखबार के पहले पन्ने पर जगह दे दे/ उसकी जरूरत को समझे/ उसकी मारकता का अहसास करे/ उसकी सच्चाई की पड़ताल कर पूरा कंपैक्ट स्टोरी लगाए/ तो यह पाठकों के साथ भी न्याय/ उसका भरोसा जीतने के लिए काफी होगा/ सरकार और विवि प्रशासन पर ज्यादा नहीं/ कम ही सही/ दबाव डालने वाला होता/ कमोवेश/ उस खबर की चर्चा तो होती/ मगर/ ब्रीफ में उस खबर को समेट कर/ बिना पैसे का लनामिवि में कोई काम होता ही नहीं है/ इसे हल्के और फौरी रूप में लिखना/ और उसे अखबार में जगह देना कतई पत्रकारिता मिशन को हजम होता/ दिखता, नहीं दिख रहा। यह तो, आज के वेबसाइट संस्कृति के मानिंद हो गया, सबसे पहले सबसे तेज, हमारे चैनल को लाइक करें…ब्रेकिंग न्यूज…बगैरह-बगैरह/

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अखबार स्थायित्व का बोध है/
उसमें छपी खबर की विश्वसनीयता है/लोग कहते हैं/अखबार में यह खबर छपी है/ यानी हिम्मत भी/जोश भी/भरोसा भी/सच्चाई की पराकाष्ठा भी/ फिर ऐसी हिमाकत/पाठकों को ज्यादा देर तक टिकाने में बिल्कुल असमर्थ सा/सामने दिखने लगा है/यह पत्रकारिता के लिए बेहद ही दु:खदा वाली स्थिति की ओर इशारा भर है/ आखिर उस खबर में/ भ्रष्ट व्यवस्था है/ तंत्र है/ या फिर व्यक्ति है/ इसका उद्भेदन कौन करेगा? / पर्दाफाश की जवाबदेही किसकी है/ कारण/ बतौर खबर…/एमआरएम कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य यह कहते दिखें/ वह भी उस कर्मी से/ जिन्हें वह बतौर उस कॉलेज के प्रधानाचार्य रहते हटा दिया हो/ कि बिना पैसे दिए यहां (लनामिवि) कोई काम नहीं होता/ बिना पैसा का काम नहीं होगा/ अभी विश्वविद्यालय की यही स्थिति है/ अधिकारियों को पैसा दो/ तो तुम्हें काम पर फिर से रख लेंगे/

इस बात के कई मायने हैं/
कौन-कौन अधिकारी इस कृत्य में लिप्त हैं/ कौन-कहां-कितना पैसा ले रहा है/ वह कर्मी/ जिसे हटाया गया/ उसपर आरोप क्या थे/ क्यों उसे हटाया गया/ उसपर आज की तारीख में/ क्या कार्रवाई हो रही है/ या होगी/ ऐसे तमाम सवाल हैं/ आखिर पूर्व प्रधानाचार्य किस ओर/ किस पर/ कहां/ क्यों इशारा कर रहे हैं/ सीधी तौर पर घूसखोरी की बात/ भ्रष्ट तंत्र की परिभाषा/ क्यों सार्वजनिक कर रहे/ अगर कर रहे तो खुलकर क्यों नहीं बोलते/ उनकी बातों में कितनी सच्चाई है/उस सच्चाई की जांच करेगा कौन/ ऐसे भ्रष्ट/घूसखोर अफसरों की फौज विवि में अब तक क्यों है/उनकी खोज करेगा कौन/शिक्षा के नाम पर घूस/रिश्वत की अंधेरगर्दी में लिप्त लाल कोठरी की सच्चाई सामने आएगा/उसे लाएगा कौन? / ऐसी तमाम बातें/ इस खबर से जुड़ी हैं/ जिसे विस्तार देकर/ अगर पहले पन्ने पर जगह मिलती/ उस खबर का सही/ सटीक/ और जिम्मेदार जगह मिलती/ तो जरा साचिए…/क्या उस रिपोर्टर का कलेजा उस खबर के छपने के बाद 56 इंच का नहीं हो जाता।
अगर….
सच मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ   

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