धर्म बाजार में उतर जाए। बाजारीकरण का हिस्सा बन जाए। राज करने की नीति की पैठ घुसे, उसे आवरण देने लगे। एक खास खरोंच के साथ वह अग्रसर हो। विशेष पहचान के आलिंगन में उसकी गिनती शुरू हो जाए।
शास्त्रार्थ/शब्द/मोचन/उसके अर्थ/तारत्मय/लय/अभिव्यक्ति/आक्रमण/सुरक्षा के परत/विस्माधिबोधक/आलोचना…
निश्चलता की धार कुंठित दिखे। पवित्रता कोने में, दरकिनार सवालों से सना जाए। उसी में सिमटता दिखे। तय है, ऐसे में….तमाम विकल्प खुलते हैं। समाज की पाट हिस्सों में बंटती, लसलसाहट की परतें उकेरती, परंपरा/धर्म-अधर्म/रास्ते/विकल्प/सम्मोहन/मारण/वशीकरण/ उसके निहितार्थ/उसके लिए शास्त्रार्थ/शब्द/मोचन/उसके अर्थ/तारत्मय/लय/अभिव्यक्ति/आक्रमण/सुरक्षा के परत/विस्माधिबोधक/आलोचना/उसका त्रिकोण/धर्मसंकट/हठयोग/उसका मोचन/जिस्मानी ताकत/रूहानी वजूद/तार्किक/कटौतीपूर्ण/द्वंद्व/तिरस्कार/ उपार्जन/उसकी उपज/बीज संक्रमण/सूखते रेत/अधजली शमशान की राख/भस्म/उसके रूप/विस्तार/तिलाजंलि/लोह/पाथर/आग…सभी के निस्तार/ उसका वेग/ परिमार्जन/अर्थव से सामवेद तक/सृष्टि के आरंभ से लेकर/धरा के आकार/उसके प्रकार/पंचतत्व/निस्तार/आवेग/कर्म/उसका फल/मनोयोग/मनोवृत्ति/संस्कार/दयात्व मोहन/समीप्य/मंत्र से प्रकृति को सहेजने की ताकत/उसका पुरूषार्थ/तेज से गर्भधारण/उसकी उत्पत्ति/एक सांस में वस्त्र का वो बहाव/छल/कपट/निस्तेज मर्यादा का दोहन/धर्मयुद्ध/उसकी जीत/जीत के फलितार्थ/उसके मायने/ सबकुछ उसी हिंदुतत्व के जकड़न में/सुसज्जित/फलित/भयावह/कमतर/भाव के ईद/उसी परिवेश में/संस्कृति का ध्वजवाहक बने/मर्यादा पुरुषोत्तम के जयघोष/या फिर उसी अलंकार से/एक बहाव/निर्विकार/निसंकोच अनंत बातें हमें झकझोरती सामने आ खड़ी होती हैं। हलाहल, आपसी पाट-विरक्ति-अलगाव को बाध्य, उसी के करीब, उसे स्वीकारने और नकारने के मत-विमत के पेंच में फंसती, उस कुल्हाड़ की शिकार बरबस होती दिखती, सामने है।
जहां, प्रभु श्रीराम पर कोई टिप्पणी तो नहीं है
जहां, प्रभु श्रीराम पर कोई टिप्पणी तो नहीं है। मगर, मौजूदा उस दृष्टिकोण में अंतर साफ है। जहां उस प्राण-प्रतिष्ठा को देखने की प्रवृत्ति में उल्टे चश्मे को सीधा करने से खरोंच ना आए, मगर ऐसा हो नहीं रहा। ऐसा दिखता भी नहीं। बात तब जाकर ठहरती, रूकती, सिसकती आगे बढ़ती है, जहां इसका राजनीतिक पाठ, बाजारीकरण के बीच हो रहा।
चाहे गांधी के हे राम हों या केवट के श्रीराम
क्या राम एक राजनीत का हिस्सा हो सकते हैं? क्या राम कभी देश के राजनीतिक पृष्ठभूमि में रहे हैं। क्या उनकी जरूरत आज तक राज करने के लिए पड़ी है? जो राम, 14 वर्षों का वनवासी है। उसने आस्था की ऐसी परछाईं हर जनमानस पर ऐसी डाली है, सदैव वह साथ ही रहेगा। चाहे गांधी के हे राम हों या…केवट के श्रीराम।
हर हिंदू, आस्था, धर्म की पवित्रता, उसकी शुचिता, उसके आधात्म के विभिन्न आवामों, अध्यायों से जुड़ा है
ऐसे कई सवाल हैं, जो आस्था से इतर हैं। हर हिंदू, आस्था, धर्म की पवित्रता, उसकी शुचिता, उसके आधात्म के विभिन्न आवामों, अध्यायों से जुड़ा है। सबों के विचार, कई श्रेणियों में विभक्त हैं। होने भी चाहिएं। हर घर में तुलसी चौरा, हर घर की अपनी गोसाउन, हमारी, हर हिंदू की तातक, श्रद्धा की ताकत में लावण्य है।
किसी दल में होना। कहलाना। एक आम आदमी होना। कहलाना और ये अफीम…
किसी दल में होना। कहलाना। उसकी सदस्यता को आत्मसात करना। उसका ध्वज फहराना। उसकी सोच को लहराना। यह एक बात है। दूसरी बात है, एक आम आदमी होना। कहलाना। दोनों चीजों को एक साथ देखने का नजरिया ही अफीम की शक्ल में लहू के साथ नसों फड़फड़ा उठता है। जो घातक है।
अब अयोध्या से निकला एक इश्तिहार देखिए। आज के अखबारों में है…
मगर, इस अफीम वाली संख्या देश में आज बहुसंख्यक सरीखे है। कार्यक्रम किसका है। कौन प्रायोजक है। निमंत्रण कौन भेज रहा है। निमंत्रण की जरूरत क्यों है? किसे है? निमंत्रण को वर्गीकृत अंदाज में भेजने की नौबत क्यों आई? समझना होगा? अब अयोध्या से निकला एक इश्तिहार देखिए। आज के अखबारों में है…
अब अयोध्या से निकला एक इश्तिहार देखिए। आज के अखबारों में है…
श्रीराम जन्म भूमि मंदिर, अयोध्या…पौष शुक्ल द्वादशी, विक्रम संवत् 2080, सोमवार, 22 जनवरी 2024, समय दोपहर 12:20। अब इस विज्ञापन को देखकर भला विपक्ष आपके साथ कैसे होगा? इसका जवाब चाहिए। कारण, राजनीति के विसात पर वहीं राम परोस दिए गए हैं। परोसे जाते रहे हैं। अब, इस राम से परहेज कौन कर रहा?
मगर बाकी के 5 …हमें सोचने को विवश करते हैं
यह कार्ड नहीं है। यह अनुरोध पत्र है साथ में आमंत्रण भी, जहां मकर संक्रांति से 22 जनवरी तक अपने निकट के मंदिर में स्वच्छता अभियान चलाएं। 22 जनवरी को अपने निकट के मंदिर में सामूहिक राम नाम संकीर्तन करें। प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम अपने निकटतम मंदिर में टीवी-एलइडी-स्क्रीन लगाकर सामूहिक रूप से दिखाएं। प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने गांव-कॉलनी-मोहल्ले में प्रसाद वितरण करें। प्राण प्रतिष्ठा के दिन सायंकाल घर की चौखट और कार्यस्थल दुकान पर कम से कम पांच दीपक जलाएं। प्राण प्रतिष्ठा दिवस के उपरांत दर्शन के लिए अपने अनुकूल समयानुसार अयोध्या पधारें…यह अंतिम वाक्य हमारे, हम सबों के लिए निमंत्रणपूर्ण आग्रह है…मगर बाकी के 5 …हमें सोचने को विवश करते हैं। कारण…
जेहन पर हाथ रखकर जरा पूछिए…वहां से आवाज क्या निकलती है?
कभी हमारे ईद-गिर्द के मंदिरों में झांक लीजिए। कहते हैं, मिथिलांचल मंदिरों का देश है। मगर, इस मंदिर के देश में, मंदिरों की दुर्दशा यहां तक है, बिना भोग लगाए घनश्याम को सुला दिया जाता है। उनके पट में जबरन ताला जड़ दिया जाता है। उपेक्षा, उपेक्षित होने का दंश क्या है, कैसा है, कभी फुर्सत मिलें, या आप स्वयं इसके भागीदार कभी बनें हों तो जेहन पर हाथ रखकर जरा पूछिए…वहां से आवाज क्या निकलती है? इस आवाज को कौन सुनेगा, किसे सुनाई पड़ना चाहिए। कब किसने सुना है। क्या कभी सुनने की जरूरत पड़ी है। उत्तर-जवाब क्या मिल रहा…? मैं जहां हूं, वहां मुझे राम को लाकर कौन देगा? हमारी परंपराएं टूटते-बिखरते, खंडहर दीवारों में कैद होती जा, दिख रहीं। अवशेष भी शेष बचे मगर बचाएगा कौन?
सिंधु से समुद्र तक फैली भारत भूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानने वाला कौन है?
प्रत्येक व्यक्ति जो सिंधु से समुद्र तक फैली भारत भूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिंदू है। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते हैं। इसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।
विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का सम्मिश्रण, मगर संस्थापक कौन?
हिंदू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परंपराओं का सम्मिश्रण माना जाता हैं, जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अंदर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियां, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है…।
बस, समझने का फर्क और जरूरत है…जिसे आप बगल के मंदिरों से भांप सकते हैं….
फिर, कहां हम, कहां आप, कहां, फिर यह राज कहां की पद्धति, कहां की नीति…सच मानिए तो… हिंदू होना और कहलाना….बड़ा फर्क है…। मेरे सुधी सम्मानित पाठकों, यहां किसी का विरोध या समर्थन नहीं है। बस, समझने की जरूरत है…जिसे आप अपने बगल के मंदिरों की दुर्दशा से भांप सकते हैं….जहां हम, प्रतिदिन, नित्य निवेदित होते हैं…जयश्री राम…क्योंकि हिंदू के एक ही राम जो सत्य है…
अब देखिए, कहां फंसे आज रामलला
अब देखिए, कहां फंसे हैं रामलला। यह यहां लिखने का फलसफा सिर्फ यह है कि रामलला आखिर कहां जाकर अटकें, फंसे, बेतमलब बने, लाचारी के साथ सामने हैं जहां रामलला के नाम पर मुकदमा दायर करने के बाद अब निर्वाणी अनि अखाड़ा के महंत धर्मदास ने एलान कर दिया है, रामजन्मभूमि मुकदमे का फैसला जिस 70 साल से चली आ रही जिस रामलला नाम की मूर्ति के हक में आया है। उसी मूर्ति कि स्थापना गर्भगृह में होगी। इसके अलावे किसी मूर्ति की स्थापना गर्भगृह में नहीं हो सकती। हालांकि इससे दो साल पहले भी उन्होंने आरोप लगाया था।
100 फीसद में 80 फीसद राजनीति हुई है
महंत धर्मदास से ट्रस्ट को लेकर सवाल खड़ा करते कहा था, ‘राजनीतिक वर्ग से अभी भी झेल रहे हैं और पहले भी झेल रहे थे। अभी ये है कि ट्रस्ट बनाया है ये राजनीति बना है। ट्रस्ट में वैष्णव को नहीं रख कर अपने लोगों को रखकर पैसा वसूली करने लगे और अपना ही अधिकार जमाने लगे। 100 फीसद में 80 फीसद राजनीति हुई है। ट्रस्ट को सामाजिक परंपरा के बारे में मालूम नहीं है। इसका राम जन्मभूमि से कोई लेना देना नहीं है। उन लोगों को ट्रस्ट में बैठा दिया गया है…अब ये सवाल क्या कहते हैं, क्या सोचने को विवश करते हैं…इससे बचना होगा…यही हमारी सोच होनी चाहिए…
हिंदू, शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय जपते हैं…मगर क्यों?
ऐसे में, राम को सिर्फ यूं समझें, इसे इस रूप में आत्मसात करें जहां राम का लोकप्रिय मंत्र श्री राम जय राम जय जय राम (अक्सर “ओम” के साथ जोड़ा जाता) है, जिसे समर्थ रामदास ने पश्चिमी भारत में लोकप्रिय बनाया। मगर, “रामनाम सत्य है” यानि…राम का नाम सत्य है। इसे आमतौर पर हिंदू, किसी शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय जपते हैं, मगर ऐसा क्यों है, यही समझने की जरूरत है…जय श्री राम With Manoranjan Thakur…