भारत कला संस्कृति सभ्यता एवं परंपरा का वाहक है और बिहार इसका घोतक। जिसका स्वरूप विभिन्न पर्व-त्योहारों के अवसर पर देखने को मिलता है। बिहार की लोककलाओं में माली कला का भी विशिष्ट स्थान है और आधुनिकता की दौड़ के बावजूद स्थानीय मालाकार परिवारों ने इसे जिंदा रखा है।
बिहार के ग्राम्य एवं शहरी जीवन का माली कला और शिल्प से पुराना नाता है। माली समुदाय की इस कला का ना केवल सामाजिक महत्व है, बल्कि धार्मिक उत्सवों में भी इसका बड़ा महत्व है। किसी भी शुभ अवसर पर इनके द्वारा बनाये झांप की उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है। शादी ब्याह के लिए मौड़ हो, लड़की की शादी में मड़वा की सजावट या पूजा पाठ हेतु झांप हो, यह कला सर्वत्र अपना रंग बिखेरती है।
बात करें सावन में विशेष रुप से चढ़ाए जाने वाले झांप की तो हिंदू धर्म में सावन मास को सबसे पवित्र महीना माना जाता है, इस माह से ही हिंदुओं के विभिन्न पर्व त्यौहारों का श्री गणेश होता है। जिसकी शुरुआत नाग पंचमी से होती है। जिसमें नाग देवता को फूल, माला, दूध, खीर लावा के अलावे माली मालाकार समाज के द्वारा मंजूषा कला पर आधारित मंडप स्वरूप झांप चढ़ाया जाता है। आधुनिकता की दौड़ में भी मालाकार परिवारों ने इस कला को जीवित रखा है। इस वर्ष नाग पंचमी 28 एवं 29 जुलाई को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग दिन मनाया जा रहा है, जिसको लेकर मालाकार समाज द्वारा बड़े पैमाने पर झांप तैयार कर लिया गया है।
मालाकार सनई की लकड़ी और शोला से मंदिरनुमा ढांचे पर सफेद कागज का आवरण चढ़ाते हैं। उस कागज पर जो चित्र बनाये जाते हैं, उसे मंजूषा कहा जाता है। इस कागज पर कई तरह के चित्र बनाये जाते हैं, जिसका अपना प्रतीकात्मक महत्व है। इनकी कलाकृतियों में आधुनिकता और पौराणिकता का कुशल संतुलन दिखता है। जिसमें लोक संस्कृति प्रमुखता से उभरती है और यही लोकसंस्कृति बिहार की पहचान है।
कला, संस्कृति एवं समसामयिक मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन करने वाले माली मालाकार समाज के युवा शिक्षक कौशल किशोर क्रान्ति ने बताया कि दुर्गा पूजन स्थान, ब्रह्मस्थान, गोसाईं स्थान, ग्राम देवता एवं अन्य पूजास्थलों पर देवी देवताओं के लिए मुकुट-सरीखे चढ़ावा के लिए बनाए जाने वाले आकर्षक झांप माली मालाकार जाति का जीवकोपार्जन का खानदानी पेशा है। झांप बनाने के लिए इस माली समाज के लोगों सुदूर के गांव के तालाब, गड्ढे, पोखर, चौर की पानी में तैर कर कोढ़िला काटकर माथे पर लाते हैं। सनई की खेती करते हैं। सनई के संठी, कोढ़िला झांप बनाने का मुख्य कच्चा माल है। सनई से सोन निकालकर संठी निकाले जाते हैं, इसके बाद कोढ़िला को काटकर सुखाया जाता है। फिर कोढ़िला को तेज धारदार छूरी से कांटछांट कर खुंटा निकाला जाता हैै और कोढ़िला एवं संठी के सहयोग से झांप तैयार किया जाता है। हरा रंग से रेखांकन कर लाल, पीला से भरे त्रिमूर्ति रंग से सजे झांप में सर्प, घोड़ा, हाथी, लड़की, नाव, त्रिशूल, फूल एवं पक्षी आदि का आकर्षक चित्र बनाया जाता है। पहले कोढ़िला को ही छील कर कागज़ भी निकला जाता था अब दिनों दिन झांप के निर्माण में परिवर्तन एवं आधुनिकता आई है।
कोढ़िला के अभाव में पहले पहल सादा कागज साटकर ऊपर वर्णित विभिन्न आकर्षण चित्र बनाया जाता था। अब लागत एवं मेहनत के अनुपात में झांप का उचित मूल्य नहीं मिलने के साथ-साथ आधुनिक के रंग में रंगीन होने के लिए रंगीन कागज ही चिपका देते हैं। जिसे लोग विभिन्न पूजा के अवसर पर झांप खरीदकर चढ़ौना के लिए ले जाते हैं। झांप चढ़ावे का खासा महत्व नागपंचमी को देखने को मिलता है, क्योंकि इस दिन प्रत्येक विषहरी स्थान पर हजारों की संख्या में झांप चढ़ाया जाता है। इसके पीछे कई किवदंती प्रचलित है, जिसमें महादेव की मानस पुत्री नागकन्या मनसा एवं पतिव्रता नारी बिहुला की कथाएं अत्याधिक प्रचलित है।
कहा जाता है कि जगत में अपनी पूजा कराने की उतावली मनसा पिता शिव जी को यह बात कहती है। लेकिन, शिवभक्त चंदू सेठ द्वारा शिव के अलावे किसी और की पूजा नहीं करने पर क्रोधित होकर मनसा उसके बेटों को डस लेती है। बेटों की मृत्यु के बाद शिव जी के आशीर्वाद से पुनः एक पुत्र बाला का जन्म होता है। बड़े होने पर उसकी शादी बिहुला से होती है, लेकिन सुहागरात के दिन ही मनसा बाला को डस लेती है। लेकिन पत्नी की पति और शिव भक्ति देखकर मनसा बिहुला के पति बाला का प्राण लौटा देती है। उसी समय से मनसा को मनसा देवी की मान्यता भगवान शिव के द्वारा दी गई तथा नागपंचमी के दिन उसकी पूजा की जाती है।
माना जाता है कि बिहुला अपने मृत पति के शरीर को जिस मंडपनुमा आकार पर ले गयी थी, उसी को कालांतर में रूप बदलकर झांप का स्थान दिया है। जिसमें मंजूषा कला को अंगीकार कर हरा, लाल या गुलाबी एवं पीला रंग से सुसज्जित कर आकर्षण झांप तैयार किया जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव का आशीर्वाद के साथ-साथ उनकी मानस पुत्री नाग कन्या मनसा की पूजा से सभी प्रकार के काल संकट बाधा विघ्न डर का नाश होता है। ज्योतिष बिन्दुओं को रेखांकित करने वाले सेना के रिटार्यड शिक्षक सुनील पाठक ने झांप पर उकेरित आकृतियों को मंजूषा कला से प्रेरित बताया है जो संस्कृति की अमिट छाप हैै।