back to top
⮜ शहर चुनें
दिसम्बर, 23, 2025

नाम संजय है न जी!

spot_img
spot_img
- Advertisement - Advertisement

हां एक वचन बहु वचन में उलझ गये। आनंद लीजिए। कहते हैं राजनीति विचारधाराओं से चलती है—कहीं जातिवाद, कहीं धर्मवाद, कहीं समाजवाद, तो कहीं पूंजीवाद या साम्यवाद। लेकिन बिहार की मौजूदा राजनीति को देखकर लगता है कि अब ये सारे वाद पुराने पड़ चुके हैं। आज का सबसे प्रभावी और सर्वमान्य वाद है नामवाद। और इस नामवाद का सबसे चमकदार नाम है संजय। हर पार्टी में अभी नामवाद चल रहा है। अन्य सभी वाद अभी बेअसर हैं।

- Advertisement - Advertisement

इन दिनों शायद ही कोई ऐसा राजनीतिक दल होगा, जहां संजय नाम के किसी नेता का दबदबा न हो। बीजेपी को ही देख लीजिए। दूसरे दलों में संजयों का बढ़ता कद देख पार्टी ने अपने यहां एक और संजय खोज निकाला और उन्हें सीधे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी। राजनीतिक विश्लेषक जातीय और सामाजिक समीकरण बैठाते रह गए लेकिन निर्णय हुआ नाम के आधार पर। वैसे बीजेपी के लिए यह नाम नया भी नहीं है। कुछ वर्ष पहले संजय जायसवाल भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। अब संजय सिंह ‘टाइगर’ मंत्रिमंडल में शामिल होकर नाम की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

- Advertisement - Advertisement

जद(यू) तो इस मामले में पहले से ही आगे है। पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष का नाम भी संजय है। परिणाम भी दिख रहा है। हाल के चुनाव में विधायकों की संख्या दोगुनी हो गई। पार्टी में डंका बज रहा है। पिछड़ों की पार्टी में आज ब्राह्मण कार्यकारी अध्यक्ष होने पर जब सवाल उठे, तो नीतीश जी का जवाब बड़ा सरल और असरदार था—

- Advertisement -

“नाम संजय है न जी!”

राजद की बात करें तो वहां तो संजय सर्वेसर्वा की भूमिका में हैं। हरियाणा से आए संजय राज्यसभा सदस्य भी हैं और पार्टी की नीति तय करने में भी उनकी अहम भूमिका है। असर इतना कि परिवार के भीतर भी सियासी खींचतान देखने को मिल रही है। कपरफुटव्वल मचा है। बेटे-बेटियां अलग राह पकड़ने की बात कर रहे हैं लेकिन नाम का प्रभाव ऐसा है कि संजय आज भी सत्ता की ड्राइविंग सीट पर जमे हुए हैं।

लोजपा में तो तस्वीर और भी स्पष्ट है। बिहार के नए मंत्रिमंडल में पार्टी कोटे से दो मंत्री बने। संयोग देखिए, दोनों का नाम संजय। यहां किसी विश्लेषण की जरूरत ही नहीं पड़ी—नाम देखा और पद तय।

कुल मिलाकर राजनीति का गणित अब बहुत सरल हो गया है। न जाति देखिए, न क्षेत्र, न विचारधारा। बस नाम पर नजर डालिए। अगर नाम संजय है, तो समझिए राजनीतिक भविष्य सुरक्षित है।

शायद आने वाले दिनों में राजनीतिक दलों के घोषणापत्र से पहले एक नया मानदंड जुड़ जाए—योग्यता बाद में, नाम पहले

और नाम अगर संजय हो, तो फिर कहना ही क्या? जलवा तय है।

- Advertisement -

जरूर पढ़ें

बिहार-झारखंड में 2025 में Reliance Jio का अजेय दबदबा: कैसे बना नंबर वन?

Reliance Jio: दूरसंचार बाजार में प्रतिस्पर्धा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, लेकिन बिहार और...

दैनिक कार्य समय: बदल रहे हैं Working Hours के नियम, जानिए हरियाणा समेत अन्य राज्यों में क्या है नई व्यवस्था

Working Hours: देश में कर्मचारियों के काम के घंटों को लेकर एक बार फिर...

Numerology 2026: मूलांक 2 वालों के लिए नई शुरुआत, नेतृत्व और अवसरों का वर्ष

Numerology 2026: अंक ज्योतिष के दिव्य प्रकाश में वर्ष 2026 मूलांक 2 के जातकों...

मीशो के शेयर धड़ाम: शेयर बाजार में 8% की गिरावट, निवेशकों की बढ़ी चिंताएँ

Stock Market: ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म मीशो के निवेशकों के लिए मंगलवार, 23 दिसंबर का दिन...
error: कॉपी नहीं, शेयर करें