शिव का धनुष भंग आज फिर धनुष टूट गया। धनुष जब-जब टूटा है, उसकी टंकार से क्रोध ही निकले हैं। सीता स्वयंवर में धनुष टूटे, ऋृषि परशुराम आक्रोशित हो उठे। जनक से क्रोध में सवाल किया, हे जनक, यह धनुष किसने तोड़ा उसका नाम बताओ नहीं तो पृथ्वी पर जितने राज्य हैं, सब उलट-पलट कर डालूंगा।
श्रीराम आगे आते हैं। कहते हैं, ऋृषिराज… शंकर के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका दास ही होगा। मगर परशुराम नहीं समझे। नहीं मानें। तब फिर लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं। बोलते हैं, जो करना हो सो करो। शिव धनुष हमने तोड़ा है। वैसे, भगवान श्री कृष्ण ने भी शिव धनुष तोड़ा था। यह कम लोग जानते हैं।
आखिर, श्री कृष्ण ने शिव धनुष क्यों तोड़ा? यह जानना भी जरूरी है। बताया जाता है, जब भगवान विष्णु ने अपना आठवां अवतार श्रीकृष्ण के रुप में लिया, तब कुछ परिस्थितियों से श्रीकृष्ण के हाथों शिवजी का धनुष टूट गया। यह उस समय की बात है, जब कंस ने श्रीकृष्ण को नंदगांव से मथुरा बुलाकर उनकी हत्या की योजना बनाई थी। इस दौरान कंस के बुलावे पर श्रीकृष्ण अक्रूरजी के साथ धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए मथुरा पधारे। श्रीकृष्ण उस मंदिर में पहुंचे जहां यज्ञ का आयोजन किया गया था। उस ही मंदिर में कंस ने भगवान शिव का धनुष रखा था।
इसी धनुष के लिए यज्ञ का आयोजन भी किया गया था। श्रीकृष्ण ने धनुष को छूने की इच्छा जताई। कृष्ण की इच्छा सुनकर पहले सभी दानव हंसने लगे। भला, एक बालक इस धनुष को कैसे उठा सकता है, लेकिन श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में ही धनुष को उठाकर तोड़ दिया। कंस ने जब धनुष टूटने का समाचार सुना, वह घबरा गया।
क्योंकि, ऐसी भविष्यवाणी थी, जो इस धनुष को उठा लेगा उसके हाथों कंस का वध होगा। मथुरा में खुशी की लहर दौड़ी। हर्ष का माहौल बन गया। चलो, कंस को मारने वाला आ गया। इस घटना के अगले ही दिन श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया। मथुरा को उसके अत्याचार से मुक्त करवाया।
वैसे, भगवान शिव के पास कितने धनुष थे? ऐसे दो ही धनुष थे। एक त्रैता में श्रीराम ने तोड़ा। दूसरा, धनुष राजकुल के पास था, जिससे त्रिपुरासुर का वध किया गया था। इस धनुष को श्रीकृष्ण ने कंस की रंगशाला में प्रवेश करके तोड़ दिया। ऐसे में, सवाल यह भी उठा, आखिर, सबसे शक्तिशाली धनुष कौन था? फिर पिनाक (संस्कृत: पिनाक:) भगवान शिव के धनुष की बात सामने आई। हिंदू महाकाव्य रामायण में इस धनुष का उल्लेख है, जब श्री राम इसे जनक की पुत्री सीता को अपनी पत्नी के रूप में जीतने के लिए भंग करते हैं।
इस बीच सवाल यह भी है कि आखिर, धनुष बाण लेकर कौन पैदा हुआ था? इन तीनों धनुषों को ब्रह्माजी ने भगवान शंकर को समर्पित कर दिया। इसे भगवान शंकर ने इंद्र को दे दिया। इस तरह इंद्र के पास यह पिनाक धनुष पहुंचा जहां से फिर परशुराम और फिर बाद में राजा जनक के पास पहुंच गया। लेकिन, गांडिव वरुणदेव के पास पहुंच गया। वरुणदेव से यह धनुष अग्निदेव के पास और अग्निदेव से यह धनुष अर्जुन ने ले लिया था।
खैर, बात उस धनुष भंग की जो सर्वमान्य संस्कृति में सीता स्वंयवर का है। जब क्रोधित परशुराम परसा हाथ में लिए मंच पर आते हैं। आज मंच पर इस धनुष के साथ कोई और है। परिद्श्य में कोई और? पटाक्षेप या आरंभ दो धुरंधरों का है। संग्राम तो अभी शेष है। सामने मातोश्री है।
कारण, शिवसेना के दो फाड़ होने के खिस्से पुराने हो चले हैं। बीच में यह धनुष ही बचा था जो दो धरों के बीच आग में धी सरीके था, जो आज टूट गया। कहा गया, इसकी चोरी हो गई। बात पीएम की आंच तक पहुंची। यह अलाव जलाने वाला कोई और नहीं, बल्कि वही शिवसेना, जिसका अस्तित्व 19 जून 1966 को एक प्रमुख कार्टूनिस्ट बाल केशव ठाकरे की उत्पत्ति है, के आराम कुर्सी पर बैठे उद्दव ठाकरे ने उठाए हैं। कुर्सी उस बाला साहेब की है, जिसने कहा था, मेरे हिसाब से दो ही लोकतंत्र हैं। एक वो, जिसमें सहना है, चुप रहना है… या वो जिस में सहना नहीं है, कहना है।
मगर, आज देश के हलात अलग एजेंडे पर है। महाराष्ट्र की विरासत को लेकर अलग एजेंडे सेट हो रहे हैं। कारण, देश में लोकतंत्र की हत्या हुई है। यह बात, उसी पार्टी के नेता संजय राउत कह रहे हैं। वैसे, शिवसेना में धनुष को लेकर, सवाल, उसकी खींचातानी यह पहली बार नहीं है। इससे पहले भी राज ठाकरे और उद्दव ठाकरे के बीच भी धनुष यज्ञ का हवन हो चुका है। जिसके बाद राज बाला साहेब से बिमुख, शिवसेना से अलग कतार में खड़े हो गए।
मगर, इसबार एक मराठी मानुष धनुष के अधिकारी बने हैं, लिहाजा मातोश्री में हलचल स्वभाविक जिसकी बानगी, बाला साहेब के पोते आदित्य ठाकरे के उस ट्वीटर से सामने आता दिखा जहां तीन पीढ़ियों की एक तस्वीर साझा की गई। इससे पहले भी, राज ठाकरे ने उद्दव को लेकर उस दौरान भी कई सवाल उठाए थे, जब बाला साहेब बीमार थे। कई चर्चाओं और कई विवादों के बीच उद्दव को बाला साहेब की धनुष पर बाण चढ़ाने का मौका मिला।
अक्सर उनकी ही हुंकार सुनाई और नजर आती रही। लेकिन, इस बार धनुष बाण पुराना, वही है, मगर हाथ, उसे थामने वाला कोई और है। ऐसे में, यह बात भी उतनी ही सच्चाई के साथ सामने है, उद्दव कभी भी राजनीति में नहीं उतरना चाहते थे। उनका बचपन से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी की तरफ रूझान था। मगर, बाघ वाले को राजनीति में आनी पड़ी। यहां राजनीति के धर्मयुद्ध में कूदने के बाद उनके कई ऐसे राजनीतिक फैसले हुए जिनका विरोध परिवार से लेकर पार्टी फोरम तक दिखा। मगर, इस बार बात बहुत आगे निकल गई।
और, रास्ता हाई कोर्ट से निकलकर सुप्रीम फरियाद तक पहुंच गया। अभी तो, असली शिवसेना होने का टैग शिंदे अपने पक्ष में कर चुके हैं। लेकिन, बात यहीं खत्म नहीं हो रही। क्योंकि बाला साहेब ने ही कहा था, आदमी की ताकत और उसकी हिम्मत, उसकी छाती कितने इंच की है, इससे तय नहीं की जाती। उसकी ताकत होती है, उसके दिमाग में। अब दिमाग की लड़ाई ही शेष है। जब दोनों पक्ष एक दूसरे को पटखनी देने की हर दिन सोचेंगे।
पहली बार यह युद्ध सामने है, जहां लड़ाई बाला साहेब की पार्टी के दो गुटों में आमने हैं। क्योंकि उसी बाला साहेब ने कहा था, मैं सही हूं या गलत इसका फैसला आप नहीं देश की जनता करेगी… क्योंकि सबसे ऊपर मैं एक ही अदालत को मानता हूं…और वो है जनता की अदालत।