दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। लनामिवि संगीत व नाट्य विभाग में शनिवार को सोदाहरण – व्याख्यान माला में सुरों के अलग-अलग तार सप्तक सतरंगी हो उठे। तीनताल, एकताल में विभिन्न विधाओं के स्वरोच्चारण व लगाव के आरोह-अवरोह ने ऐसा माहौल बनाया कि संगीत की हर कोटि के सुर साकार होते चले गए। मौके पर मौजूद संगीत विशेषज्ञ के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से डॉ. कुमार अंबरीष चंचल व मगध महिला कॉलेज पटना विश्वविद्यालय के डॉ. अरविंद कुमार ने सुर, लय, ताल की बाजीगरी के एक-
एक सरगम से मौजूद लोगों को लयकारीवद्ध होकर परिचित कराया। मौके पर सबसे पहले डॉ. अरविंद कुमार ने लोकधर्मी संगीत शास्त्र पर सोदाहरण-व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण बातों को बताया। लोकधर्मिता के संदर्भ में संगीत शास्त्र के महत्त्व को स्थापित किया।
कहा, हमारा भारतीय संगीत जन के अनुरूप है क्योंकि कहा भी गया है, रंजकः जन चित्तानां। संगीत के शास्त्र पक्ष का यह अनुपम व ज्ञानवर्धक व्याख्यान था। सोदाहरण-व्याख्यान के दूसरे विशेषज्ञ डॉ. कुमार अंबरीष चंचल ने संगीत में पद व स्वर रचना पर अपनी भावनाओं से अवगत कराया। वहीं, डॉ. चंचल ने पदों में स्वर-संयोजन की महत्ता पर प्रकाश डाला। गायन-वादन में पद व स्वर – रचना को विस्तारपूर्वक बताते हुए विभिन्न विधाओं के लिए स्वरोच्चारण व लगाव को गाकर बताया।
राग कलावती में स्वरचित रचना बजाई तूने बंशी कान्हा को प्रस्तुत किया और बताया कि पद व स्वर की उपस्थिति कैसी होनी चाहिए । राग विहाग में तीन ताल में मध्यलय नंद धाम खेलत हरि डोलत को प्रस्तुत करते हुए पद के अर्थ के अनुसार स्वर-लगाव व प्रस्तुति के बारे में बताया। राग अहीर भैरव में अलबेला सजन आयो रे के बाद ध्यान लग्यो तेरो नाम को तीनताल व एकताल में भी प्रस्तुत कर बताया कि ताल के बदल जाने से भाव में भी परिवर्तन हो जाता है।
नवीनता आ जाती है। सोदाहरण-व्याख्यान के क्रम में राग चारूकेशी में भजन तुम बिन मेरी कौन खबर ले की सुंदर प्रस्तुति की, जिसमें पद के अनुरूप स्वर – संयोजन का भावमय स्वरूप स्पष्ट दृष्टिगोचर हुआ। डॉ. चंचल ने विभिन्न स्वरावलियों की ओर से भजन के स्वरूप को स्थापित रखने के अनेक उदाहरण भी प्रस्तुत किए। गजल की प्रस्तुति में पद प स्वर – संयोजन के व्यावहारिक रूप को समझाते हुए शाकिया इक नजर जाने से पहले गाया।
तुलसीदास कृत श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारूणम्’ का भावपूर्ण गायन कर विषय सफल निरूपण किया।अंत में, राग जोग में दो अलग – अलग पदों साजन मोरे घर आए व जाओ रे बदरा जाओ रे का अलग-अलग अंदाज में गायन कर विविधता का उदाहरण प्रस्तुत किया। इनके साथ तबला पर संगति कर रहे थे, शिव नारायण महतो व हारमोनियम पर सुजीत कुमार दूबे। आरंभ में विभागाध्यक्षा प्रो.लावण्य कीर्ति सिंह काव्या ने आगत विशेषज्ञों का स्वागत किया। मंच संचालन वरीय शोध अध्येता दत्य प्रकाश ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कनीय अध्येता मणिकांत ने किया।
You must be logged in to post a comment.