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7 नवम्बर, 2024
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प्रिसिंपल डॉ. रहमतुल्ला का आह्वान, उठो जागो, तब तक चैन की सांस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाए

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प्रिसिंपल डॉ. रहमतुल्ला का आह्वान, उठो जागो, तब तक चैन की सांस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाए

दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। मिल्लत कॉलेज में स्वामी विवेकानंद जयंती युवा दिवस का आयोजन प्रधानाचार्य डॉ. मो. रहमतुल्ला की अध्यक्षता में हुआ। शनिवार को आयोजित कार्यक्रम में प्रधानाचार्य डॉ. रहमतुल्ला ने विस्तृत विमर्श करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद की गिनती भारत के महापुरुषों में होती है। उस समय जब भारत अंग्रेजी दासता में अपने को दीन-हीन पा रहा था, भारत माता ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जिसने भारत के लोगों का ही नहीं, पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया। उन्होंने विश्व के लोगों को भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया। इस महापुरुष पर संपूर्ण भारत को गर्व है। इस महापुरुष का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता के एक क्षत्रिय परिवार में विश्वनाथ दत्त के यहां हुआ था। विश्वनाथ दत्त कोलकता हाई कोर्ट के नामी वकील थे। माता-पिता ने बालक का नाम नरेंद्र रखा। नरेंद्र बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने 1889 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोलकाता के जनरल एसेंबली कॉलेज में प्रवेश लिया । यहां उन्होंने इतिहास, दर्शन, साहित्य समेत अन्य विषयों का अध्ययन किया।

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नरेंद्र ने बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। नरेंद्र ईश्वरीय सत्ता व धर्म को शंका की दृष्टि से देखते थे,लेकिन वे जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। वे अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए ब्रह्मसमाज में गए। यहां उनके मन को संतुष्टि नहीं मिली। फिर नरेंद्र सत्रह वर्ष की आयु में दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। परमहंस का नरेंद्र पर गहरा प्रभाव पड़ा। नरेंद्र ने उन्हें अपना गुरु बना लिया। इन्हीं दिनों नरेंद्र के पिता का देहांत हो गया । नरेंद्र पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई लेकिन अच्छी नौकरी न मिलने के कारण उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। नरेंद्र गुरु रामकृष्ण की शरण में गए। गुरु ने उन्हें मां काली से आर्थिक संकट दूर करने का वरदान मांगनें को कहा।

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नरेंद्र मां काली के पास गए परंतु धन की बात भूलकर बुद्धि व भक्ति की याचना की। एक दिन गुरु ने उन्हें अपनी साधना का तेज देकर नरेंद्र से विवेकानंद बना दिया। रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानंद कोलकाता छोड़ वरादनगर के आश्रम में रहने लगे। यहां उन्होंने शास्त्रों व धर्मग्रंथों का अध्ययन किया। इसके बाद वे भारत की यात्रा पर निकल पड़े। वे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जूनागढ़, सोमनाथ, पोरबंदर, बड़ौदा, पूणे, मैसूर होते हुए दक्षिण भारत पहुंचे। वहां से वे पांडिचेरी व मद्रास पहुंचे। सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म-सम्मेलन हो रहा था। शिष्यों ने स्वामी विवेकानंद से उसमें भाग लेकर हिंदू धर्म का पक्ष रखने का आग्रह किया।

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स्वामी जी कठिनाइयों को झेलते हुए शिकागो पहुंचे। उन्हें सबसे अंत में बोलने के लिए बुलाया गया लेकिन उनका भाषण सुनते ही श्रोता गद्‌गद् हो उठे। उनसे कई बार भाषण कराए गए। दुनिया में उनके नाम की धूम मच गई। इसके बाद उन्होंने अमेरिका व यूरोपीय देशों का भ्रमण किया। अमेरिका के बहुत से लोग उनके शिष्य बन गए। चार वर्षों में विदेशों में धर्म-प्रचार के बाद विवेकानंद भारत लौटे। भारत में उनकी ख्याति पहले ही पहुंच चुकी थी। उनका भव्य स्वागत किया गया। स्वामी जी ने लोगों से कहा वास्तविक शिव की पूजा निर्धन व दरिद्र की पूजा में है, रोगी और दुर्बल की सेवा में है। भारतीय अध्यात्मवाद के प्रचार व प्रसार के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। मिशन की सफलता के लिए उन्होंने लगातार श्रम किया, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया।

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चौदह जुलाई, 1902 की रात्रि नौ बजे 39 वर्ष की अल्पायु में ‘ ॐ ‘ ध्वनि के उच्चारण के साथ उनके प्राण-पखेरू उड़ गए, परंतु उनका संदेश कि‘ उठो जागो व तब तक चैन की सांस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाए,  हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। मौके पर सभा को संबोधित करते हुए मुस्तफा कमाल अंसारी ने कहा कि युवाशक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति है। प्रो. शहनाज बेगम ने कहा, सभी धर्म का सम्मान करना स्वामी जी का प्राथमिकता थी। छात्र संघ अध्यक्ष रेहान खान, अल्ताफउल हक, डॉ. रहमान ने भी सभा को संबोधित किया। मंच संचालन डॉ. महेश चंद्र मिश्रा वहीं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सोनी शर्मा ने किया। मौके पर कॉलेज के सभी छात्र छात्राएं शिक्षक व शिक्षक कर्मचारी मौजूद थे।

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