


सिंहवाड़ा, देशज टाइम्स ब्यूरो। बौआ साहेब फिर से जीवंत हो उठे। इलाका ही नहीं संपूर्ण मिथिलांचल यहां तक कि पड़ोसी मुल्क नेपाल भी उन्हें जानता श्रद्धानिवेदित करता है। ऐसे संत के बसाए भरवाड़ा स्थित कबीर आश्रम में दो दिवसीय 131वां वार्षिक भंडारा का आयोजन अपने आप में अपूर्व व दर्शनीय होता है। कोई भी जो यहां की शक्ति को जानता है उस भक्ति में तल्लीन जरूर होने को बेचैन हो उठता है। हर भक्तों की चाहत व धैर्य एक साल तक जवाब देती रहती है कि कब वो दिन वो भक्ति का मार्ग खुले और वहां उस भंडारा में जाकर शामिल हो जाऊं जिसकी शुरूआत शनिवार से होते ही पूरा इलाका हर रास्ता उसी धाम की ओर मुड़ चला ह जो कबीर आश्रम के नाम से जाना जाता है।

भरवाड़ा इन दिनों स्वर्ग से कम नहीं दिख रहा। यही वजह है कि आसपास के जिले व प्रांत के अलावा नेपाल व भूटान देश से भी आए हजारों की संख्या में अनुयायियों ने इसमें शिरकत किया। सत्संग से पूर्व दिव्या रानी व प्रज्ञा कुमारी ने स्वागत गान से श्रद्धालुओं का स्वागत किया। आश्रम के सचिव हरिनाम दास की देखरेख में श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया गया। वहीं, सत्संग, प्रवचन में संत विद्यानंद दास ने कहा कि जब तक हम धर्म का सही ज्ञान प्राप्त कर पारखी नहीं बन जाते तब तक भक्ति के सुंदर फल को प्राप्त नही कर सकते। धर्म के नाम पर हिंसा, आडंबर, छल, प्रपंच, अंधविश्वास आदि ज्ञान के अभाव के कारण हैं। उन्होंने कहा कि सत्संग के बिना सद्गति की प्राप्ति संभव नहीं है।

गुरुवाणी पाठ के साथ कबीर दर्शन की सूक्ष्म विवेचना करते हुए कहा कि किया कराया सब गया जब आया अहंकार। कबीर-सत्संग की आधी घड़ी, तप के वर्ष हजार, तो भी समतर ना तुले, संतन किया विचार। अर्थात जीव के कल्याण के लिए ज्ञान ही समर्थ है और ज्ञान संत के संग से ही प्राप्त होता है इसलिए महापुरुष हमेशा जीव को सत्संग के लिए ही प्रेरित करते हैं ताकि वह सतगुरु देव की ओर से बताए गए मार्ग पर चलकर ज्ञान को प्राप्त कर सकें। हजारों वर्ष तपस्या करने के उपरांत जीव में अहंकार उत्पन्न हो जाता है। अहंकार आने से जीव का पतन शुरू हो जाता है,लेकिन ज्ञान इससे विपरीत है। ज्ञान अहंकार के नाश होने पर ही सिद्ध होता है। इस विचार पर समस्त संत महापुरुष ग्रंथ साहेब, रामायण, वेद, शास्त्र, पुराण आदि सभी एकमत हैं।

उन्होंने श्रद्धालुओं से सद्गुरु कबीर साहब के आदर्श पर चलने का आह्वान किया। वहीं, धनौर के संत श्री नारायण साहब, डॉ. बनारसी यादव, विनय भूषण ने भी जीवन के उपयोगी क्षण को सात्विक विचारधारा में बदल कर सदगुरु कबीर के आदर्शो पर चलने का आह्वान किया। कार्यक्रम के दौरान सुमंत कुमार पंडित के गायन हरि सुमिरण में ध्यान लगाओ,राम-नाम मनवा नित्य गाओ…ने भक्तो को झूमने पर मजबूर कर दिया। वहीं आयोजन समिति के भुवनेश्वर यादव, अली अहमद तमन्ना, जयप्रकाश यादव,ललन प्रसाद यादव, सियाशरण यादव,सीताराम यादव, योगिंदर प्रसाद, युगल यादव, सुरेश यादव, स्वर्णकार शंभु ठाकुर विधि व्यवस्था की देख रेख में लगे थे। बिजली-पानी के इंतजाम में सहजानंद दास, गोविंद कुमार,रवि चेतन,रामश्रेष्ठ यादव,दिनेश यादव,मिथिलेश यादव,रमेश यादव,जितेश प्रसून आदि सक्रिय रहे।

सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सिंहवाड़ा थानाध्यक्ष सत्यप्रकाश झा दल-बल के साथ भंडारा स्थल के इर्द-गिर्द निगरानी कर रहे थे। जानकारी के अनुसार, भरवाड़ा स्थित कबीर आश्रम में भंडारा व सत्संग की शुरुआत सन 1887 में संत गिरवर दास ने शुरू की थी। उनके निधन के बाद आश्रम की जिम्मेदारी संत बौआ साहब संभाल रहे थे। उनके निधन के बाद बौआ साहब के ज्येष्ठ पुत्र संत विद्यानंद दास आश्रम की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं। प्रत्येक साल होने वाले भंडारा में लाखों की तादाद में अनुयायी आते हैं। कोभी चौक से घोड़दौड़ चौक तक लगे मेले में कई प्रकार की अस्थायी दुकान लगाई जाती है। आने वाले श्रद्धालु मेले में लगी दुकानों में खरीदारी करते हैं। मेले में लगे झूले का बच्चे खूब आनंद उठाते हैं।










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