


दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। वेद की ऋचाओं-मंत्रों का पूजा-पाठ से कोई संबंध नहीं है। यह संपूर्ण ब्राह्मंड के रहस्यों को खोलता है। विज्ञान भी फिलवक्त यही कर रहा है। वेद ने हजारों वर्ष पहले ही कह दिया कि पृथ्वी चपटी नहीं गोल है। मंगल, बुध, गुरू आदि का कैसा रंग, कैसा रूप व पृथ्वी से कितनी दूरी है यह भी बतला रखा है। वेद प्राणवायु को आधार बनाकर चलता है तो विज्ञान विद्युत के सहारे चलायमान है। यह बात केएसडीएसयू के विद्वान पूर्व कुलपति डॉ. देवनारायण झा ने एमएलएसएम कॉलेज के कांफ्रेंस हॉल में वेद की दृष्टि में विज्ञान पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए कही। स्वयंसेवी संस्था डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन व रसायन शास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में डॉ. झा ने बताया कि वेद प्राचीनतम् विज्ञान है। विज्ञान का आधुनिक स्वरूप भी वेद से ही निकल रहा है। प्राचीन काल से खगोल विज्ञान वेद का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण, अथर्ववेद आदि में मौसम, औषधि, गणितीय सूत्र, गुरूत्त्वाकर्षण का नियम, जीवविज्ञान आदि का सउदाहरण विवरण मिलता है। वस्तुतः वेद विश्व के समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ है। वेद की महत्त्वता का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि हजारों वर्ष बीतने के बावजूद आजतक इसके एक भी शब्द को बदला नहीं जा सका है। श्रृतियों के सहारे सुरक्षित रहा हमारा वेद आज भी आमलोगों की पहुंच से दूर है। लोग वेद की दुहाई तो देते हैं, चर्चा करते हैं पर इसके सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं। वर्तमान समय में वेद का मात्र तीस से चालीस प्रतिशत हिस्सा ही उपलब्ध है। वेद भारतीयों की संपत्ति है, इसलिए इसका संरक्षण करना हर भारतीय का कर्तव्य है।
वेदों से हर रोज सीख रहे हम
इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए रसायन शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेम मोहन मिश्रा ने कहा कि हमें पढ़ाया जाता है कि जो कुछ भी खोज हुआ है, आविष्कार हुआ है सब पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने किया है। सुई से लेकर विमान तक विदेशी वैज्ञानिकों ने बनाया है। पर जब हम अपने वेदों का अध्ययन करते है तो उपरोक्त सभी बातें मिथ्या प्रतीत होती है। ऋग्वेद से ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में भी हमारे यहां विमान उपलब्ध थे। ये विमान बिजली, अग्नि, जल, वायु, गैस, तेल, सौर उर्जा, चुंबकीय शक्ति और मन की गति से चलते थे। यहां तक की आइंस्टिन के दिए हुए सापेक्षवाद के सिद्धांत का उल्लेख भी हमारे वेदों में मिलता है। डॉ. मिश्र ने बताया कि स्वयंसेवी संस्था प्रभात दास फाउंडेशन के सहयोग से महाविद्यालय का रसायन शास्त्र विभाग ‘वेदों को जानों’ विषय को लेकर क्रमबद्ध कार्यक्रमों का आयोजन करेगा।
आधुनिक विज्ञान के अविष्कार वेद ग्रंथों में पूर्व से ही मौजूद
सेमिनार में बोलते हुए फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि हमारे वेद-ग्रंथों में विज्ञान के अधिकांश सिद्धांतों का वर्णन मिलता है। वेद ने ना केवल धरती पर चलनेवाले अपितु आकाश में विचरने वाले व समुंद्र की गहराइयों में रहने वाले जीवों का भी अध्ययन सटीकता से किया है। हमारे आधुनिक विज्ञान ने अबतक मात्र तेरह लाख सजीवों की प्रजातियों को ढ़ूंढ़ा है। जबकि हमारा वेद 84 लाख सजीवों का वर्गीकृत विवरण उपलब्ध कराता है। अगर हम गौर से देखें तो आधुनिक विज्ञान ने कई ऐसे अविष्कार किए है जो हमारे वेद ग्रंथों में प्रारंभ से ही मौजूद है।
वेद में सारा संसार समाहित
सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. माधव चैधरी ने कहा कि वेद में सारा संसार समाहित है। ऋग्वेद में कहा गया है कि सूर्य अपनी किरणों से जलाशयों का पानी भाप बनाकर ऊपर ले जाता है और पुनः वर्षा के माध्यम से उसे धरती पर बरसाता है। हमारा आधुनिक विज्ञान भी इसी थ्योरी को प्रस्तुत करता है। विज्ञान भी मानता है कि चंद्रमा सूर्य की किरणों से प्रकाशमान है और इसका उल्लेख हमारे वेदों में भी है। अगर दूसरे शब्दों में कहे तो वेद भारतीय विज्ञान है। जो कतिपय कारणों से आधुनिक युग में उतर नहीं पाया, पर इसके सिद्धांत आज भी आधुनिक विज्ञान से आगे है। कार्यक्रम का प्रारंभ गंधर्व कुमार झा के स्वस्तिवाचन व काजल कुमारी के मैथिली स्वागत गीत से प्रारंभ हुआ। अतिथियों का स्वागत और धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार झा ने किया। सेमिनार में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार झा, चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई, मैथिली विभागाध्यक्ष डॉ. रमेश झा, सीएम साइंस कॉलेज के डॉ. यूके दास, एमआरएम काॅलेज के डॉ. विवेकानंद झा, डॉ.ललिता कुमारी मिश्रा, डॉ. अमरकांत कुंवर, डॉ. उषा चैधरी, डॉ. विभा झा, फाउंडेशन के राजकुमार गणेशन, अनिल कुमार सिंह, मनीष आनंद, नवीन कुमार समेत दर्जनों छात्र व अन्य उपस्थित थे।












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