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7 नवम्बर, 2024
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संस्कृत के दो सितारे जमीं से जुदा हो गए देखते-देखते, एक साथ टूटा संस्कृतानुरागियों पर गमों का पहाड़, नहीं रहे दो मर्मज्ञ रामकरण शर्मा व ब्रह्मानंद चतुर्वेदी

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संस्कृत के दो सितारे जमीं से जुदा हो गए देखते-देखते, एक साथ टूटा संस्कृतानुरागियों पर गमों का पहाड़, नहीं रहे दो मर्मज्ञ रामकरण शर्मा व ब्रह्मानंद चतुर्वेदी

दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। किसी को नहीं पता था कि साल 2018 जाते-जाते सभी को खासकर संस्कृतानुरागियों को एक साथ इतना बड़ा जख्म दे जाएगा जो शायद कभी नहीं भर पाएगा। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कर्मियों के चहेता व हरदिल अजीज प्राच्य विषयों के प्रकांड विद्वान पूर्व कुलपति डॉ. रामकरण शर्मा व सिंडिकेट सदस्य प्रधानाचार्य डॉ. ब्रह्मानंद चतुर्वेदी अब इस दुनिया में नहीं रहे। अठारह दिसंबर की रात दोनों विद्वानों के सदा के लिए चले जाने से सभी मर्माहत के साथ किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। साफ शब्दों में कहें तो संस्कृत शिक्षा को वाकई अपूरणीय क्षति हुई है। डॉ. शर्मा का इलाज के दौरान दिल्ली के एक निजी अस्पताल में तो डॉ. चतुर्वेदी का दानापुर के निकट वाहन की ठोकर से निधन हो गया।

संस्कृत के दो सितारे जमीं से जुदा हो गए देखते-देखते, एक साथ टूटा संस्कृतानुरागियों पर गमों का पहाड़, नहीं रहे दो मर्मज्ञ रामकरण शर्मा व ब्रह्मानंद चतुर्वेदी

यह जानकारी देते हुए देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि संस्कृत विश्वविद्यालय के इतिहास में डॉ. शर्मा ही ऐसे भाषाविद विद्वान थे जो लगातार 1974 से 80 तक यानी छह वर्षों तक कुलपति रहे।आज जिस विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग के सहारे हमसभी मांगलिक कार्यों का निर्वहन करते हैं उस ऐतिहासिक पञ्चाङ्ग के प्रवर्तक भी डॉ. शर्मा ही थे। इनका अधिकांश समय संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विदेश में ही गुजरता था। संस्कृत विश्वविद्यालय के आधुनिकीकरण के अगुआ रहे डॉ. शर्मा काफी सरल हृदय के व मृदुभाषी थे। जानकारी मिलते ही अपने कर्मचारियों के दुख तकलीफों में वे स्वयं बिन बुलाए ही उनके घर पहुंच जाते थे।

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कई भाषाओं पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी व दर्जनों पुस्तकें उन्होंने लिखी थी। संस्कृत का प्रचार-प्रसार हो और वह लोक-जन की भाषा बनें। इसके लिए डॉ. शर्मा प्रत्येक शनिवार को कर्मचारियों, शिक्षकों व पदधिकारियों की बैठक बुलाते थे। हिदायत रहती थी कि सभी संस्कृत में ही बोलेंगे। विश्वविद्यालय में संस्कृत सप्ताह की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी। संस्कृत विश्वविद्यालय में मशक्कत के बाद पद सृजन भी उन्होंने ही कराया। यूजीसी में विश्वविद्यालय का स्थान उन्हीं के कारण मिल पाया। संस्कृत शिक्षा को माध्यमिक शिक्षा से बाहर निकाल कर उच्च शिक्षा का दर्जा डॉ. शर्मा ने ही दिलाया। उनके किये गए कार्यो की फेहरिस्त बहुत लंबी चौड़ी है।

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एक शब्दों में कहें तो डॉ शर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय के आधुनिक सुधारक थे। संस्कृत शिक्षा के असली चिंतक भी। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली के भी वे वर्षों निदेशक रहे थे।भारत सरकार के संस्कृत शिक्षा सलाहकार के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवा दी थी। इसी तरह संस्कृत विश्वविद्यालय के आधुनिक ध्रुवतारा रहे डॉ चतुर्वेदी अपनी वाकपटुता को लेकर काफी चर्चित थे। व्याकरण के विद्वान डॉ. चतुर्वेदी संस्कृत विश्वविद्यालय के सेठ रामनिरंजन दास मुरारका संस्कृत कॉलेज, पटना सिटी के प्रधानाचार्य थे। यहीं के देवी मंदिर के अध्यक्ष भी। पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर की संचालन कमेटी में भी वे थे। विश्वविद्यालय के मौजूदा सिंडिकेट के सदस्य थे। सुलभ इंटरनेशनल संस्था से भी वे जुड़े हुए थे। कई पुरस्कारों को पाने वाले डॉ. चतुर्वेदी संस्कृत विश्वविद्यालय का बड़े ही दमदारी से हरजगह प्रतिनिधित्व किया करते थे।दोनों सितारों के एक साथ डूब जाने से तमाम सिंडिकेट व सीनेट सदस्यों के साथ कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा, प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह, प्रो. श्रीपति त्रिपाठी, प्रो. शिवाकांत झा, प्रो. सुरेश्वर झा, डॉ. शैलेंद्र मोहन झा, नरोत्तम मिश्रा, देवकी लाल कर्ण समेत सभी कर्मियों ने दिवंगत आत्माओं के प्रति सादर श्रद्धांजलि अर्पित की है।साथ ही ईश्वर से प्रार्थना भी की है कि शोक संतप्त परिवारों को दुख सहने के लिए संबल व शक्ति प्रदान करें।

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