दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। विश्वविद्यालय संगीत व नाट्य विभाग में शुक्रवार को सोदाहरण व्याख्यान सह मंच प्रदर्शन का आयोजन किया गया। विषय था, ख्याल गायकी अष्टांग गायकी ग्वालियर घराना गायकी। मौके पर बतौर विषय विशेषज्ञ ग्वालियर घराना के पंडित विष्णु दिगंबर पलुष्कर, परंपरा के प्रतिनिधि कलाकार प्रो. पंडित विद्याधर व्यास मौजूद थे। इनके साथ तबला पर संगति करने पहुंचे थे दिल्ली विश्वविद्यालय के तबला वादक सागर गुजराती व हारमोनियम पर संगति से कार्यक्रम को सुरमयी बनाने में महती भूमिका आकाशवाणी दरभंगा के निदेशक डॉ. उमा शंकर झा ने निभाई। कार्यक्रम के बतौर मुख्य अतिथि लना मिवि के कुलसचिव कर्नल निशीथ कुमार राय भी प्रस्तुति को सराहते दिखे। आरंभ में आगत अतिथियों ने दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम का उद्धाटन किया। इसके बाद संगीत की छात्राओं की ओर से कुलगीत की प्रस्तुति की गई।
विषय विशेषज्ञों का विभागाध्यक्ष प्रो.लावण्य कीर्ति सिंह काव्या ने परंपरानुसार पाग, चादर व पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया। पंडित विद्याधर व्यास ने उद्बोधन का आरंभ सांगीतिक तत्वों की व्याख्या करते हुए संगीत व इसके प्रतिनिधि तत्वों को विस्तारपूर्वक समझाया। उन्होंने कहा कि ध्रुपद के काल में भी ख्याल था। यह बंद रूप में था। जब ध्रुपद का प्रचार कम हुआ तब ख्याल प्रकाश में आया। कई विधाओं से कई चीजों को लेकर इसका विकास हुआ। कव्वाली से तानें ली गईं।
खटका, मुर्की को सम्मिलित किया गया। इस तरह इसे तत्कालीन फ्यूजन कहा जा सकता है। ख्याल में सदारंग की बंदिशों का बहुत बड़ा योगदान है। इसके बाद तराना के बारे में बताया जो एक निर्गीत प्रकार है। इसमें सर्वधर्म समभाव है। तबला पखावज के बोल भी हैं। यह रागदारी संगीत में ही है, इसमें सबकुछ सिमटा हुआ है। सब कुछ समेट कर यह हिन्दुस्तानी संगीत का नायाब रूप है।
कव्वाली से निकले हुए गायकों ने ख्याल को स्थापित किया जिसके कारण ही ख्याल का प्रथम घराना कव्वाल बच्चों का घराना हुआ। इसके बाद प्रथम घराना ग्वालियर घराना हुआ। यह उस क्रिस्टीलाइज्ड गायकी का अपना रूप बन गया, उसकी एक पहचान बन गई और वही अष्टांग गायकी है। यह गायकी सिर्फ ख्याल से संबंधित है। ध्रुपद, ठुमरी, दादरा इत्यादि अष्टांग गायकी नहीं है, सिर्फ ख्याल अष्टांग गायकी है। विषय विशेषज्ञ ने अष्टांग के आठों अंगों का सोदाहरण विस्तृत निरूपण किया जो उपस्थित छात्र-छात्राओं व जन समूह के लिए ज्ञानवर्धक था।
उन्होंने कहा कि ग्वालियर घराना में ये आठों ही अंग दिखाई देना चाहिए और यही ग्वालियर गायकी है। इसी अष्टांग से किसी एक अंग विशेष को लेकर अलग अलग घरानों ने प्रमुखता से प्रस्तुत किया, यथा, आगरा घराना में लय व लयकारी तो किराना में स्वर लगाव ,मीड आदि। सोदाहरण – व्याख्यान के बाद पंडित विद्याधर व्यास ने राग मधुवंती में तीनताल मध्यलय में अष्टांग को गाकर प्रस्तुत किया ,बंदिश के बोल थे, विनती हमारी सुनो हे प्रभु जी। इसके बाद राग श्री की सुन्दर प्रस्तुति की गई जो झपताल में निबद्ध बंदिश के साथ आरंभ हुआ, बोल थे,’ हरि के चरण कमल, निसदिन सुमिर ले’। ग्वालियर घराना की यह अप्रतिम प्रस्तुति थी। इस कार्यक्रम में शहर गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।




You must be logged in to post a comment.