न्यायक भवन कचहरी नाम। सभ अन्याय भरल तेहिठाम। सत्य वचन विरले जन भाष। सभ मन धनक हरन अभिलाष। कपट भरल कत कोटिक कोटि। ककर न कर मर्यादा छोटि। कह कवि ‘चन्द्र’ कचहरी घूस। सभ सहमत ककरा के दूस…चंदा झा

दरभंगा, देशज टाइम्स। मिथिला लेखक मंच के बैनर तले बुधवार को महाकवि चंदा झा की जयंती मैथिली साहित्य परिषद दरभंगा परिसर में मनाई गई। समारोह की अध्यक्षता डॉ. शंकर झा व प्रो. उदयाशंकर मिश्र ने करते हुए चंदा झा के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विचार रखते हुए चंदा झा को मिथिला, मैथिली व उसके उत्थान का जनक बताया। कहा कि मिथिला भाषा रामायण की रचना कर उन्होंने हमें, मिथिला की भाषा व संस्कृति को बहुत कुछ दिया। उनका अवदान मिथिलावासी व यहां का साहित्य ताउम्र सहेज कर रखेगा। कहा कि मैथिली भाषा खासकर आधुनिक मैथिली साहित्य के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार के रूप में चंदा झा आज भी हमारे बीच मौजूद हैं और रहेंगे। महाकवि विद्यापति के बाद सबसे बड़े रचनाकार मैथिली के कवीश्वर चंदा झा ही थे। अवधि में गोस्वामी तुलसीदास व मैथिली में कवीश्वर चंदा झा दो अनमोल हैं। चंदा झा सत्य के अनुरागी थे और भाषाई ताकत उनकी अदम्य पहचान थी जो अब हमारे जेहन में सुरक्षित सहेजकर जीवनभर रहेगा।
इस अवसर पर चंद्रेश ने कहा कि न्यायालय में जो भ्रष्टाचार है उसके विरुद्ध भी अपने कविता के माध्यम से विचार रखने वाले कवीश्वर चंदा झा मैथिली साहित्य के नायक हैं। उन्होंने कविता के माध्यम से समाज को जगाया उसे आगे बढ़ने, लड़ने व आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया। इस अवसर पर डॉ. शंकर झा ने कहा कि कवीश्वर चंदा झा रचित मिथिला भाषा रामायण की रचना जिस उद्देश्य के लिए हुआ वह मिथिलावासियों ने नहीं अपनाया। हम लोगों को नियमित रूप से रामचरितमानस व वाल्मीकि रामायण की तरह पाठ करना चाहिए। अवधि में जो तुलसी का स्थान है वही स्थान मैथिली में चंदा झा का है। इस अवसर पर प्रो. सुधीर कुमार झा ने कहा कि जो अपने इतिहास से नहीं सीखता वह समाज निश्चित रूप से आने वाले समय में गुलाम हो जाता है और चंदा झा ने जो थाती छोड़कर मिथिला के लिए गए उसको तमाम मिथिला वासी को अपनाना चाहिए।






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