चंदन पांडेय, दरभंगा देशज टाइम्स ब्यूरो। इससे तो बढ़िया था आदमी भैंस-बकरी बनकर जन्म लेता कम से कम यूं तो जिंदगी नहीं मरती, फर्श पर नहीं रेंगती, डॉक्टरों के बिना तो सांसें नहीं अटकती, दवा के लिए दर-दर तो नहीं भटकना पड़ता, इलाज के नाम पर चूहे तो नहीं काटते, मगर यहां तो डीएमसीएच में मरना ही लिखा है। सुशासन की सरकार बेसुध है। यहां की अस्पतालीय प्रशासन खामोश हैं। लोग मरते हैं, हर दिन दम घूटते हैं मरीजों के कभी कोई परिजन हाथों में बगावत के बिगुल लेकर फूंकता है व्यवस्था थोड़ी देर के
लिए शांत हो जाती है और फिर शुरू हो जाता है वही जिंदा आदमी को मारने का खेल। उसे जमींन पर इस जाड़े के मौसम में पटककर ये बिना जमीर के डॉक्टर उन्हें मरने के लिए छोड़ दे रहा बेबस और सरकार है कहती है, दरभंगा में एम्स खोलेंगे और यूं ही जमीन पर
आदमियों की लाश बिछाते रहेंगे। शर्म करो सरकार। हालत देखो गायनिक वार्ड व आपातकालीन विभाग की क्या हाल बनाकर छोड़ दिया है। सुनिए आपके अधीक्षक डॉ. आरआर प्रसाद क्या कह रहे, कहते हैं अस्पताल के पास बेड नहीं है मगर फिर भी सरकार के पास शर्म बची है एक बेड नहीं दे सकते जिंदा आदमी को अरे यही वजह है मरने के बाद भी कबीर अंत्येष्टि से दो गज कफन भी नहीं मिलती आम इंसानों को।
सुनो सुशासन की सरकार आपके अधीक्षक कहते हैं
सुनो सुशासन की सरकार आपके अधीक्षक कहते हैं कर्मियों को निर्देश दिया गया है मरीजों को सुविधा दे मगर हकीकत जानेंगे मंगल पांडेय जी रात में देखरेख के लिए एक अदद वार्ड ब्वॉय नहीं मिलता, आप मरते रहेंगे मगर वरीय डॉक्टर जिनके यूनिट में आप कैद हैं वहां से आपको सांस लेने की आजादी नहीं मिलेगी।
वरीय डॉक्टर रात को नहीं आएंगें चाहे आप जिंदा रहें या अहले सुबह एंबुलेंस पर लदकर लाश बनकर घर पहुंचे अस्पताल प्रशासन को कुछ भी लेना –देना नहीं है। डॉक्टर साहेब हैं एयर कंडिशन में सोएंगे ही अधीक्षक साहेब हैं जाड़े में व्लोयर का मजा लेंगे ही मगर मरीज का क्या वो मरे उसकी किस्मत में ही लिखा मरना आखिर वो बिहार के सुशासन का वोटर जो है, नीतीश सरकार को जिंदा रखने की रखवाली करने वाले ए गरीब वोटरों आओ और डीएमसीएच में मर जाओ…।
गरीब मरीजों की जेबों पर डाका डालने वाले ये हैवान डॉक्टर
देशज टाइम्स से बातचीत में मरीजों के परिजनों का गला बैठ गया। एक मरीज को लेकर आए अभिभावक बहुत परेशान दिखे। डीएमसीएच की व्यवस्था से क्षुब्ध प्रेमचंद्र मिश्रा कहते हैं, अपने पिता मकसूदन मिश्रा को लेकर डीएमसीएच आएं हैं। इतनी ठंड व सर्द रात में अपने पिता को नीचे जमीन पर ही लिटाकर इलाज कराना पर रहा है। मधुबनी के कछूली गांव के श्री प्रेमचंद्र का ही यह हाल नहीं है। आइए एक और मरीज राम कुमार शर्मा की सुनते हैं, शर्मा जी रोते-रोते अपनी गरीबी व डीएमसीएच की शर्मनाक व्यवस्था का हाल
सुनाते बताते हैं, मेरे पिता भी एक हफ्ते से यहां भर्ती हैं। डाक्टर कहते हैं दवाई निजी दुकान से लाओ। इलाज दर इलाज से अब हमारे पास पैसे नहीं होने से कोई और उपाय नहीं रहा। सुनिए सुशासन बाबू सुनिए मंगल पांडेय जी यह कोई नई बात नहीं है आपके लिए मगर सच यही है, आपके डॉक्टर कमीशन खोर हैं कमीशन के लिए निजी क्लीनिक, निजी नर्सिंग होम से इनकी सांठगांठ है। ये मरीजों को इलाज के नाम पर जांच के नाम पर उन क्लीनिकों, नर्सिंग होम में भेजते हैं इनकी जेबों पर डाका डालते हैं और खुद एश कर रहे हैं। मगर कब तक यह आप सोच लीजिए…।