
दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। इसमाद फाउंडेशन की ओर से आचार्य रामानाथ झा हेरिटेज सिरीज़ के क्रम में प्रथम संवाद बाबू जानकी नंदन सिंह मेमोरियल लेक्चर में मैथिली भाषा के विकास में मुस्लिम समुदाय का योगदान पर डॉ. मंजर सुलेमान ने व्याख्यान दिया गया। मिथिला और मैथिली के विकास में मुस्लिम समाज के योगदान के साथ हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तेरहवीं शताब्दी से अभी तक की घटनाओं की चर्चा करते डॉ. सुलेमान ने कई अहम जानकारी साझा करते हुए लोगों की जिज्ञासाओं को शांत किया। इस्लाम में सूफी परंपरा के प्रारंभ में दरभंगा के योगदान से लेकर गंगा-यमुनी तहजीब के नायाब उदाहरण को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने मिथिला व मैथिली दोनो के परिप्रेक्ष्य में मुसलमानों के योगदान पर विस्तृत जानकारी दी।
नहीं भूल सकते रामबाग किला को बनाने में मुस्लिम समुदाय का अपनत्व
मुल्ला तकिया से प्रारंभ करते हुए इमाम ताज फतीहा व उनके पुत्र इमाम इस्माइल से होते हुए दरभंगी खां के बाद से सदरे आलम गौहर तक अनेक मैथिलपुत्र की जानकारी दी जिनका मिथिला व मैथिली के साथ दरभंगा के विकास में अविस्मरणीय योगदान रहा है। दरभंगा राज के रामबाग किला को बनाने के लिए समस्त मुस्लिम समुदाय की ओर से किए गए सहयोग की संक्षिप्त चर्चा भी उन्होंने की। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के वीसी डॉ. एसके सिंह इसमाद के मिथिलाक विरासत को संभालने के प्रति इस प्रयास के लिए साधुवाद दिया और मिथिला के विरासत को बचाने के लिए शुरू की गई इस मुहिम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सतत सहयोग का आश्वासन दिया।

गजानन मिश्र ने कहा, मिथिला की विरासत विशाल, मगर बन गए उपभोक्ता
अध्यक्षीय भाषण में गजानन मिश्र ने कहा कि मिथिला की विरासत मिथिला के लोगों से ही छुपा हुआ है, इस विरासत को सहेजकर आम लोगों तक पहुंचाने के लिए इसमाद को बारंबार धन्यवाद। उन्होंने कहा कि हम-सब मिथिला के इतिहास जनक, विद्यापति संग प्रारंभ कर चंदा झा तक पहुंचते ही समाप्त कर देते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि इससे भी बहुत पुरानी, विस्तृत व विशाल विरासत है मिथिला की। उन्होंने कहा कि मिथिला में 44 तरह का सॉग होता है और मात्र सौ साल पहले हमारे यहां 132 प्रकार की माछलियां होती थी। दरभंगा को मीठे आमों का शहर कहा जाता था। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक हर विधा में सबसे उच्च श्रेणी में मिथिला थी। हम-सब ने अपने बाजार को खत्म कर लिया और अब हम-सब मात्र उपभोक्ता बनकर रह गए हैं और हमारी मिथिला अब शिथिला हो गई है। पुन: मिथिला के स्वर्णिम पड़ाव तक पहुंचने के लिए हमें अपना बाजार बनाना पडे़गा और दुनिया के सामने अपनी पहचान साबित करनी पड़ेगी। इससे पूर्व कुलपति ने कंदर्पी घाट युद्ध की निशानी मिथिला विजय स्तंभ की प्रतिलिपि का अनावरण किया।

हम लौटाएंगें मिथिला का मान, यही दिखा संकल्प
कार्यक्रम में कुलसचिव कर्नल निशीथ कुमार राय, अध्यक्ष, छात्र कल्याण प्रो. रतन कुमार चौधरी, राजनीति विज्ञान के प्रो. जितेंद्र नारायण, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह, प्रो. विश्वनाथ झा, डॉ. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’, प्रो. विनय कुमार चौधरी, डॉ. शंकरदेव झा, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के विशेष पदाधिकारी श्रुतिकर झा और बिहार विधान परिषद के पदाधिकारी रमन दत्त झा, मणि भूषण राजू, आशीष चौधरी आदि मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए इसमाद फाउंडेशन में न्यासी संतोष कुमार ने कहा मिथिला का विद्वत समाज ही मिथिला को सही दिशा दे सकता है। ज्ञान ही मिथिला की पहचान को लौटा सकती है। मंच का संचालन सुमन झा ने किया।



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