मई,21,2024
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लालू-नीतीश के गुजरे जमाने का स्क्रीन शॉट…टीशर्ट, माथे पर अबीर, कंधे पर भगवा तौलिया और सामने ललकार…

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लालू-नीतीश के गुजरे जमाने का स्क्रीन शॉट…टीशर्ट, माथे पर अबीर, कंधे पर भगवा तौलिया और सामने ललकार…

कंचन किशोर मिश्रा, स्पेशल डेस्क देशज टाइम्स ब्यूरो। पीले टीशर्ट पर छपे एमएसयू व माथे पर सिंदूरी अबीर और कंधे पर भगवा तौलिया लपेटे छात्रों की इधर से उधर घूमती टोली ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाली प्रथम चरण के लिए चुनावी  रंग जमाने की कोशिश में लगी हुई है। विश्वविद्यालय के राजनीतिक मैदान में विभिन्न छात्र संगठन एक दूसरे को ललकारते हुए राजनीति शास्त्र के पाठ को व्यवहारिक रूप प्रदान कर मैदान मारने की कोशिश शुरू कर दी है। नामांकन का दौर खत्म होने के बाद जो आंकड़ा मिला है वह चुनावी समीकरण को और भी दिलचस्प बनाने को काफी है। जानकारी के अनुसार अध्यक्ष पद के लिए 150, उपाध्यक्ष 105, महासचिव 107, संयुक्त सचिव 92, कोषाध्यक्ष 108 व काउंसिल मेंबर के पद के लिए 583 नामांकन दर्ज किया गया। कुल मिलाकर 1728 छात्र छात्राओं ने 43 अंगीभूत कॉलेज व विश्वविद्यालय के चार संकाय के लिए नामांकन दर्ज किया।

याद आती जेपी की क्रांति, वो लालू -नीतीश के छात्र राजनीति का दौरलालू-नीतीश के गुजरे जमाने का स्क्रीन शॉट…टीशर्ट, माथे पर अबीर, कंधे पर भगवा तौलिया और सामने ललकार…

बात अगर छात्र राजनीति की हो तो राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव,  जदयू सुप्रीमो  वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम बरबस ही यादों में उभर आती है। जय प्रकाश नारायण के क्रांति की उपज ये दोनों नाम विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति का पर्याय नाम बन चुका है।अपनी लंबी  राजनीतिक सक्रियता के बाद अब राजनीतिक वानप्रस्थ की तरफ जाते प्रतीत हो रहे हैं। वहीं, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में एक और पारी खेलने की तैयारी में लग गए हैं। बिहार में भले ही जदयू भाजपा गठबंधन की सरकार है पर छात्रों के अखाड़े में दोनों एक दूसरे के आमने-सामने हैं।

विद्यार्थी परिषद व एमए   सयू का दौर, सेहरा किसके सिर…वक्त का इंतजार लालू-नीतीश के गुजरे जमाने का स्क्रीन शॉट…टीशर्ट, माथे पर अबीर, कंधे पर भगवा तौलिया और सामने ललकार…

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में राजनीतिक इतिहास को अगर विवेचनात्मक तौर पर देखा जाए तो स्पष्ट रूप से  प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय में अभी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मजबूत दौर से गुजर रही है। पिछले चुनाव के परिणाम को देखने से भी इसी आंकड़े को बल मिलता है। इसी साल फरवरी-मार्च महीने में आयोजित चुनाव में विद्यार्थी परिषद ने पांच महत्वपूर्ण सीटों पर कब्जा जमाते हुए एक तरफ मैदान मार लिया था। पर, एमएसयू का उठाव इस बार इनके राह में रोड़े अटका सकती है। जहां तक जदयू, राजद व कांग्रेस की छात्र संगठनों की बात है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ये सभी निष्क्रियता के दौर से गुजर रही है। देखना यह है किस दल के संगठन को उनके आंकाओं का कितना मजबूत समर्थन मिल पाता है और कौन कितनी तेजी से चुनावी तारीख से पहले पहले अपनी स्थिति को मजबूत कर उलट फेर की संभावना पैदा कर सकते।

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