पिछले दस वर्षो में यह दूरियां काफी तेजी से बढ़ी हैं
खैर,जिस तरह से संघ और बीजेपी के बीच दूरियां बढ़ रही हैं, उसके केन्द्र में कहीं न कहीं बीजेपी आलाकमान और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नजर आ रहे हैं। मोदी के पीएम बनने के बाद पिछले दस वर्षो में यह दूरियां काफी तेजी से बढ़ी हैं। संघ से जुड़े कुछ बड़े स्वयं सेवकों के अनुसार इसकी मुख्य वजह पार्टी और सरकार द्वारा कोई भी निर्णय लेने के दौरान संघ परिवार के संगठनों के साथ संवादहीनता बनाये रखना।
माना जाता है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के बयान ने कि भाजपा अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गई है। संघ और भाजपा के बीच की खाई को और चैड़ा करने का काम किया। संघ के कुुछ पदाधिकारी कहते हैं कि संघ अचानक तटस्थ होकर नहीं बैठा।
साख और सरोकारों पर विपरीत प्रभाव पड़ना लाजिमी था
2019 के लोकसभा चुनाव में मिले परिणामों के बाद आत्ममुग्ध भाजपा ने अपने सियासी फैसलों में संघ परिवार को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। केन्द्र की मोदी सरकार और भाजपा की कुछ राज्य सरकारों ने संघ परिवार की अनदेखी कर एक के बाद एक कई ऐसे फैसले कर डाले, जिनसे संगठन की साख और सरोकारों पर विपरीत प्रभाव पड़ना लाजिमी था, इसलिए संघ ने भी अपनी भूमिका समेट ली।
संघ और बीजेपी के बीच की खाई इस साल की शुरूआत से ही गहराने लगी
संघ और बीजेपी के बीच की खाई इस साल की शुरूआत से ही गहराने लगी थी। अयोध्या में श्रीरामलला के प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर भी कुछ मतभेद उभरे थे,जो लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण में बीजेपी की मनमानी के चलते और गहरा गया। परिणाम स्वरूप उत्तर प्रदेश में भाजपा को तगड़ा झटका लगा, वहीं इंडी गठबंधन को बड़ी ताकत मिली।
64 सीटें जीतने में सफल रहा था, वह 2024 में 36 सीटों पर सिमट गया
यूपी में जो एनडीए 2019 में 64 सीटें जीतने में सफल रहा था, वह 2024 में 36 सीटों पर सिमट गया। यानी पांच साल में सीधे 28 सीटों का नुकसान,जबकि बीजेपी सभी 80 सीटें जीतने का दावा कर रही थी।
2019 का चुनाव सपा-बसपा मिलकर लड़े थे, वहीं कांग्रेस अकेले मैदान में कूदी
वहीं इंडी गठबंधन मतलब सपा-कांग्रेस जो 2019 के चुनावों में 6 सीट जीत सके थे, उन्होंने इस बार 43 सीटों पर परचम लहरा दिया। बात दें 2019 का चुनाव सपा-बसपा मिलकर लड़े थे, वहीं कांग्रेस अकेले मैदान में कूदी थी। इसमें सपा की पांच और कांगे्रस की एक सीट पर जीत हुई थी,इस तरह आज का इंडी गठबंधन 2019 में छहःसीट जीत पाया था। दस सीटों पर बसपा का कब्जा हुआ था। भाजपा के इस बेहद खराब प्रदर्शन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नाराजगी को बड़ा कारण माना जा रहा था। इसी क्रम में हाल ही में दिये गये आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान को भी जोड़कर देखा जा रहा है।
अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो
बात जुलाई 2021 की है। करीब 6 महीने बाद यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 होना था। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जमीनी स्तर बीजेपी को मजबूती प्रदान करने के लिये पूरी तरह से मैदान में डटा हुआ था। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले यूपी विधान सभा चुनाव 2022 के चलते नागपुर छोड़कर लखनऊ में प्रवास करने लगे थेे।
भैया जी जोशी राम मंदिर निर्माण प्रॉजेक्ट के संरक्षक
उन्हें लखनऊ में रहकर प्रदेश के राजनीतिक माहौल को मजूबत करने के मिशन पर लगाया गया था। वहीं भैया जी जोशी राम मंदिर निर्माण प्रॉजेक्ट के संरक्षक थे। इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष और प्रभारी राधा मोहन सिंह ने लखनऊ प्रवास में संघ के अहम नेताओं के साथ बैठक की थी। जिसमें 2022 के चुनाव को लेकर संघ ने फीडबैक दिए थे। इसमें सत्ता विरोधी लहर की चुनौती से निपटना, कार्यकर्ताओं से नाराजगी को दूर करना, प्रत्याशियों को लेकर जनता में रोष आदि कंट्रोल करने का संदेश था।सब कुछ ठीकठाक चल रहा था।
योगी ने दोबारा सत्ता संभाली और
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चरण दर चरण आगे बढ़ा तो आरएसएस का ये सहयोग जमीन पर दिखाई देने लगा। भाजपा को एंटी इनकमबैंसी का जो नुकसान हो रहा था, उसे संघ ने हर विधानसभा में 400 से 500 छोटी बड़ी बैठकें कर पाटने का काम किया।
वोटरों को जागरूक करना उन्हें बूथ तक भेजने का काम किया गया। संघ की प्रांत टोली, विभाग कार्यवाह, प्रचारक जिलों के समन्वयक, विधानसभा के समन्वयकों से सीधा संवाद किया गया। इस पूरे आयोजन में भाजपा के प्रभारी, राष्ट्रीय संगठन मंत्री गवाह रहे। इस पूरी कवायद का नतीजा यह निकला कि भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा यूपी में सरकार बनाने का इतिहास रच दिया। योगी ने दोबारा सत्ता संभाली और संघ वापस अपने काम की तरफ लौट गया।
परंतु दो साल बाद…
लोकसभा चुनाव 2024 में परिस्थतियां एकदम बदल गईं। जनवरी में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से भाजपा आत्मविश्वास के लबरेज दिखाई दी। मोदी का चेहरा और राम मंदिर का श्रेय के साथ पन्ना प्रमुख तक फैल चुका पार्टी का संगठन देख पार्टी के नेता ये मानकर चल चुके थे कहीं कोई दिक्क्त नहीं है।
बता दें हर लोकसभा चुनाव से पहले आरएसएस के कार्यकर्ता हर लोकसभा क्षेत्र दर्जनों बैठकें कर लेते हैं। जनता क्या सोच रही है, प्रत्याशियों के बारे में उनका क्या ख्याल है, सांसद कितना प्रभावी है, मुददे कौन कौन से हैं, सत्ता विरोधी लहर कितनी है आदि का पूरा फीडबैक संघ के पास होता है। ये किसी भी राजनीतिक दल से ज्यादा सटीक माना जाता है। संघ से समय-समय पर फीडबैक भी तमाम माध्यमों से बीजेपी नेताओं को दिया जाता रहा है। इस बार भी परिस्थतियां प्रतिकूल होने का फीडबैक था लेकिन बीजेपी नेताओं ने इस पर गौर ही नहीं किया। परिणाम यह निकला की बीजेपी यूपी और दिल्ली दोनों जगह कमजोर हो गई।