Ram Vanvas: कभी-कभी एक चिंगारी पूरे महल को जला देती है, और अपनों के बीच भी अविश्वास की खाई खोद देती है। रामायण की कथा में भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जब एक दासी के कुमंत्रणा ने अयोध्या के भाग्य को हमेशा के लिए बदल दिया।
क्या था राम वनवास का मूल कारण?
अयोध्या नगरी में महाराज दशरथ के राज्याभिषेक के बाद सब कुछ सुचारु रूप से चल रहा था। प्रजा अपने राजा से बेहद प्रसन्न थी और दशरथ भी अपने चारों पुत्रों के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। विशेष रूप से भगवान राम, जो अपने गुणों और आदर्शों के कारण सबके प्रिय थे, महाराज दशरथ के भी अत्यधिक लाडले थे। जब दशरथ ने राम को युवराज घोषित कर उनके राज्याभिषेक का निर्णय लिया, तो पूरी अयोध्या खुशी से झूम उठी। तैयारियां ज़ोरों पर थीं, और हर कोई इस शुभ घड़ी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।
लेकिन, नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। महारानी कैकेयी की दासी मंथरा, जो शुरू से ही कैकेयी की विश्वस्त थी, अपने हृदय में ईर्ष्या और द्वेष का बीज लिए बैठी थी। राम के राज्याभिषेक की खबर सुनकर उसे ईर्ष्या और बढ़ गई। उसने सोचा कि यदि राम राजा बन गए, तो कैकेयी और भरत का महत्व कम हो जाएगा। इस दुर्भावना से प्रेरित होकर मंथरा ने कैकेयी को भड़काने की योजना बनाई।
मंथरा ने कैकेयी के मन में ज़हर घोलना शुरू किया। उसने कैकेयी को समझाया कि भरत के होते हुए राम का राज्याभिषेक अन्यायपूर्ण होगा और यह कैकेयी के भविष्य के लिए घातक सिद्ध होगा। मंथरा ने कैकेयी को उनके दो वरदानों की याद दिलाई जो दशरथ ने उन्हें दिए थे। मंथरा ने कुसंग का ऐसा प्रभाव डाला कि कैकेयी का हृदय राम के प्रति प्रेम से विमुख होकर संदेह और स्वार्थ से भर गया। यह मंथरा का कुसंग ही था जिसने कैकेयी के सरल स्वभाव को पूरी तरह से बदल दिया। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
कैकेयी, जो अब तक अपने पुत्र भरत और राम में कोई भेद नहीं करती थीं, मंथरा के बहकावे में आकर पूरी तरह बदल चुकी थीं। उन्होंने क्रोध भवन में प्रवेश कर दशरथ को अपने दो वरदानों की याद दिलाई। पहले वरदान में उन्होंने भरत को अयोध्या का राजसिंहासन मांगा, और दूसरे वरदान में उन्होंने महाराज दशरथ के सर्वाधिक प्रिय पुत्र श्रीराम को चौदह वर्ष का राम वनवास मांगा। यह मांग सुनकर महाराज दशरथ स्तब्ध रह गए। उनके लिए यह वज्रपात के समान था, क्योंकि वे अपने प्राणों से भी प्रिय राम को स्वयं से दूर करने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
महाराज दशरथ ने कैकेयी को बहुत समझाने का प्रयास किया, उन्हें उनके निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा, लेकिन कैकेयी अपने वरदानों को वापस लेने को तैयार नहीं थीं। राम के वनवास की बात सुनकर महाराज दशरथ का हृदय फट गया। वे गहरे शोक में डूब गए और अंततः मूर्छित हो गए। पूरी अयोध्या में शोक की लहर दौड़ गई, और यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई।
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अयोध्या पर गहराया संकट और राम का त्याग
जब श्रीराम को इस विकट स्थिति का पता चला, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने पिता के वचन का पालन करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पिता की गरिमा और कैकेयी के वरदानों को सर्वोपरि मानते हुए वन जाने की तैयारी शुरू कर दी। राम का यह त्याग, उनका पितृभक्ति और धैर्य, पूरी प्रजा के लिए एक मिसाल बन गया। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। लक्ष्मण और सीता ने भी उनके साथ वन जाने का निश्चय किया, जिससे पूरे अयोध्या का माहौल और भी गमगीन हो गया। राम के वनगमन से अयोध्या की रौनक जाती रही और महाराज दशरथ राम वियोग में अपने प्राण त्याग दिए। यह घटना अयोध्या के इतिहास का एक ऐसा अध्याय बन गई, जिसने त्याग, वचनबद्धता और धर्म के नए आयाम स्थापित किए। मंथरा का कुसंग वाकई में अयोध्या के भाग्य के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।




