पटना न्यूज़: बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एक ऐसा नज़ारा दिखा, जिसने सदन का माहौल गरमा दिया। कार्यवाही के दौरान जब सदस्यों के बीच हंगामा बढ़ा, तो पीठासीन अधिकारी को बार-बार ये कहना पड़ा – “अरे रुकिए….चलिए बैठिए अब बैठिए…”। आखिर क्या था वो पल, जिसने सभी का ध्यान खींचा?
बिहार विधानसभा का सत्र अक्सर गरमा-गरम बहसों और राजनीतिक नोकझोंक का गवाह बनता है। लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसे पल भी आ जाते हैं, जब सदन का सामान्य कामकाज प्रभावित होता है और माहौल में एक अलग तरह का तनाव पैदा हो जाता है। ऐसा ही एक ‘अलग’ नज़ारा हाल ही में विधानसभा सत्र के दौरान देखने को मिला, जिसने कार्यवाही को कुछ देर के लिए बाधित कर दिया।
जानकारी के अनुसार, सदन के भीतर किसी मुद्दे पर चल रही चर्चा के दौरान कुछ सदस्यों के बीच तीखी बहस शुरू हो गई। देखते ही देखते स्थिति ऐसी बनी कि पीठासीन अधिकारी को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने हंगामा कर रहे सदस्यों को शांत करने और अपनी सीटों पर लौटने के लिए स्पष्ट शब्दों में निर्देश दिए, जिनकी गूंज पूरे सदन में सुनाई दी – “अरे रुकिए….चलिए बैठिए अब बैठिए…”। यह संबोधन सदन में व्यवस्था बहाल करने की तात्कालिक आवश्यकता को दर्शाता है।
सदन में अनुशासन की चुनौती
संसदीय कार्यप्रणाली में सदन की गरिमा और अनुशासन बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अक्सर महत्वपूर्ण विधेयकों या जनहित के मुद्दों पर बहस के दौरान सदस्य अपनी बात पुरजोर तरीके से रखने के लिए उत्तेजित हो जाते हैं। हालांकि, इन बहसों की एक सीमा होती है और नियमों के दायरे में ही अपनी बात रखनी होती है। जब सदस्य इस मर्यादा का उल्लंघन करते हैं, तो सदन का कामकाज बाधित होता है।
ऐसे मौकों पर पीठासीन अधिकारी की भूमिका केंद्रीय हो जाती है। उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे सदन की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाएं और सभी सदस्यों को बोलने का उचित अवसर प्रदान करें, साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि सदन की मर्यादा बनी रहे। ‘अरे रुकिए….चलिए बैठिए अब बैठिए’ जैसे निर्देश इसी उद्देश्य से दिए जाते हैं, ताकि उत्तेजित सदस्यों को शांत किया जा सके और उन्हें नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित किया जा सके।
कार्यवाही पर पड़ा असर
इस घटनाक्रम से सदन की कार्यवाही कुछ समय के लिए रुक गई, जिससे महत्वपूर्ण विधायी कार्यों में विलंब हुआ। हालांकि, पीठासीन अधिकारी के हस्तक्षेप और अन्य वरिष्ठ सदस्यों की अपील के बाद धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हुई और सदन का कामकाज फिर से पटरी पर लौटा। यह घटना एक बार फिर इस बात को रेखांकित करती है कि लोकतंत्र के मंदिर में मर्यादा और संयम कितना आवश्यक है।
सदन में हंगामा और गतिरोध नई बात नहीं है, लेकिन एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि सभी सदस्य नियमावली का पालन करें और अपनी बात शालीनता व गंभीरता के साथ रखें। विधानसभा का हर सत्र जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतीक होता है, और ऐसे में सुचारु कार्यवाही सुनिश्चित करना सभी सदस्यों का सामूहिक दायित्व है।








