बिहार न्यूज़: स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सदर अस्पताल में दवा प्रबंधन की बदइंतजामी अब सड़कों पर आ गई है, जिसने स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल दी है। आखिर कब तक मरीजों को बुनियादी सुविधाओं के लिए भटकना पड़ेगा?
सदर अस्पताल, जो अक्सर आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवा का पहला और महत्वपूर्ण केंद्र होता है, एक बार फिर अपनी कार्यप्रणाली को लेकर कटघरे में है। अस्पताल के अंदर दवाइयों के कुप्रबंधन का आलम यह है कि लापरवाही की यह तस्वीर अब अस्पताल की चारदीवारी से बाहर निकलकर सरेआम सड़कों पर आ गई है। यह स्थिति न केवल अस्पताल प्रशासन की ढिलाई को दर्शाती है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की मौजूदा दशा पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।
दवा प्रबंधन की बदहाली
अस्पताल में दवा प्रबंधन की बदइंतजामी का सीधा खामियाजा उन गरीब और जरूरतमंद मरीजों को भुगतना पड़ रहा है, जो सरकारी सहायता के भरोसे यहां आते हैं। आमतौर पर, दवाइयों की कमी, सही समय पर आपूर्ति न होना, या फिर स्टॉक में होने के बावजूद उनका वितरण न हो पाना, ऐसे कारण हैं जो इस बदहाली को जन्म देते हैं। मरीजों को अक्सर बाहर से महंगी दवाएं खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। यह स्थिति सरकारी अस्पतालों के मूल उद्देश्य को ही कमजोर करती है, जिसका लक्ष्य सभी को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है।
सरकारी दावों पर सवाल
यह घटना राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के सरकारी दावों पर भी सवाल खड़े करती है। एक तरफ जहां सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की बातें करती है, वहीं सदर अस्पताल जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में बुनियादी दवा प्रबंधन का चरमराना इन दावों की सच्चाई को उजागर करता है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस गंभीर लापरवाही के खिलाफ क्या कदम उठाए जाते हैं और मरीजों को कब तक इस अव्यवस्था से राहत मिल पाती है।
सदर अस्पताल में दवा प्रबंधन की यह बदइंतजामी सिर्फ एक अस्पताल की समस्या नहीं है, बल्कि यह राज्य की समग्र स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त कमियों का एक आईना है। जनता को उम्मीद है कि इस मामले पर तत्काल संज्ञान लिया जाएगा और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।








