बिहार न्यूज़: प्रदेश के लाखों लोगों के लिए ज़मीन के मालिकाना हक़ और विवादों के समाधान की कुंजी माना जा रहा भूमि सर्वे का काम अपनी धीमी रफ्तार के कारण अब सरकार की चिंता बढ़ा रहा है। तय समय-सीमा में लक्ष्य पूरा न होने पर, राज्य सरकार को एक अहम फ़ैसला लेते हुए इसकी अवधि बढ़ानी पड़ी है। आखिर क्या हैं इस सुस्ती के पीछे के कारण और इससे जुड़ी चुनौतियाँ?
क्यों महत्वपूर्ण है भूमि सर्वे?
भूमि सर्वे परियोजना बिहार में दशकों से चले आ रहे भूमि विवादों को सुलझाने, सटीक ज़मीन के रिकॉर्ड बनाने और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का लक्ष्य हर रैयत (भूस्वामी) की ज़मीन का सही ब्योरा दर्ज करना है, जिससे भविष्य में होने वाले विवादों को रोका जा सके। यह राज्य के राजस्व संग्रह और प्रशासन को भी सुव्यवस्थित करने में मदद करेगा।
सर्वे की मौजूदा स्थिति और चुनौतियाँ
ताज़ा जानकारी के अनुसार, बिहार के राजस्व ग्रामों में भूमि सर्वे का काम काफी धीमा चल रहा है। अब तक केवल 25 प्रतिशत कार्य ही पूरा हो पाया है, जो निर्धारित लक्ष्य से काफी कम है। इस सुस्त गति के पीछे कई कारण माने जा रहे हैं, जिनमें कर्मचारियों की कमी, तकनीकी अड़चनें, ज़मीनी स्तर पर समन्वय का अभाव और कहीं-कहीं स्थानीय लोगों से सहयोग की कमी भी शामिल हो सकती है। इतनी धीमी रफ्तार निश्चित तौर पर परियोजना की सफलता पर सवाल खड़े करती है और सरकार के लिए चिंता का विषय है।
सरकार का अगला कदम: समय-सीमा में विस्तार
सर्वे कार्य की धीमी गति को देखते हुए, बिहार सरकार ने इसकी अवधि बढ़ाने का फैसला किया है। यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि सर्वेक्षण का काम पूरी गुणवत्ता और सटीकता के साथ पूरा हो सके, भले ही इसमें अधिक समय लगे। सरकार का मानना है कि समय-सीमा में विस्तार से संबंधित विभागों को काम में तेज़ी लाने और बाधाओं को दूर करने के लिए पर्याप्त अवसर मिलेगा। यह उम्मीद की जा रही है कि नई समय-सीमा के तहत, कार्य को गति मिलेगी और जल्द से जल्द सर्वेक्षण का लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा। सरकार ने सभी संबंधित अधिकारियों को इस कार्य को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने के निर्देश दिए हैं।







