बिहार में चल रही जाति आधारित गणना पर पटना हाइकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। बिहार सरकार की ओर से राज्य में जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली गई है। इसके साथ ही पटना हाइकोर्ट ने याचिका पर फैसला गुरुवार यानी कल तक के लिए (caste census in bihar patna high court will pass its interim order on 4th may) टाल दिया है।
जातीय गणना पर रोक लगाने के लिए पटना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस मामले पर बुधवार को हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गयी। फैसले को सुरक्षित रखा गया है। इस मामले में गुरुवार को फैसला आएगा। अखिलेश कुमार और अन्य की याचिकाओं पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ही (caste census in bihar patna high court will pass its interim order on 4th may) सुनवाई कर रही है।
जाति आधारित जन-गणना को लेकर पटना हाईकोर्ट में लगातार तीसरे दिन सुनवाई हुई। कोर्ट ने दोनों पक्ष की दलीलें सुनी। इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट अब गुरुवार को फैसला सुनाएगी।
सुनवाई के दौरान पटना उच्च न्यायालय ने ये जानना चाहा कि जातियों के आधार पर गणना और आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है? कोर्ट ने ये भी पूछा है कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है या नहीं? साथ ही कोर्ट ने ये भी जानना चाहा कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या?
बहस के दौरान हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा कि इस गणना का उद्देश्य क्या है? क्या इसे लेकर कोई कानून भी बनाया गया है? ये गणना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है या नहीं।
इस पर महाधिवक्ता पीके शाही ने जवाब दिया कि सरकार सभी बातों का ध्यान रखकर इसे करवा रही है। इस गणना से सरकार को गरीबों के लिए नीतियां बनाने में आसानी होगी। यह मामला एक मई पटना हाई कोर्ट पहुंचा था। दो दिन से लगातार सुनवाई हुई है।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अभिनव श्रीवास्तव और दीनू कुमार और बिहार सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने अपना-अपना पक्ष रहा। कोर्ट ने दोनों पक्ष की दलीलें सुनी। इसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। अब कोर्ट गुरुवार को इस मामले में फैसला सुनाएगी।
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश ने महाधिवक्ता से पूछा था कि सरकार को यह कराना था तो इसके लिए कोई कानून क्यों नहीं पास किया? इसपर महाधिवक्ता शाही ने जवाब दिया था कि राज्यपाल के अभिभाषण में सारी बातें स्पष्ट की गईं कि इसे किस आधार पर कराया जा रहा है और इसका लक्ष्य अंतिम तौर पर राज्य की जनता के लिए योजनाओं को बनाने और क्रियान्वित करने का है।
पटना हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने अदालत को बताया कि बिहार सरकार जातीय और आर्थिक सर्वेक्षण करवा रही है। उन्होंने याचिका में ये बताया कि इस तरह के सर्वे कराने का अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
दीनू कुमार ने पटना हाईकोर्ट को बताया कि राज्य सरकार जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण करवा रही है। उन्होंने कोर्ट में कहा कि ये संवैधानिक प्रावधानों के उलट यानी विपरीत है। उन्होंने ये भी कहा कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वे केंद्र सरकार करवा सकती है। ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है।
कोर्ट को ये भी बताया गया कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार 500 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। वहीं दूसरी तरफ बिहार सरकार ने कोर्ट में कहा कि जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर सुधारने के लिए ये सर्वे करवाया जा रहा है। कोर्ट इस मामलें पर गुरुवार यानी कल 4 मई 2023 को अंतरिम आदेश पारित करेगा।
जातीय गणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि जनगणना केंद्र सरकार का अधिकार क्षेत्र है। बिहार सरकार की ओर से गणना असंवैधानिक है। वहीं, शीर्ष अदालत ने मामला बिहार से जुड़ा होने के कारण पटना हाई कोर्ट में सुनवाई करने का आदेश दिया था।
राज्य सरकार का कहना है कि जातीय गणना एक ऐसा सर्वे है, जिसके जरिए सरकार लाभार्थियों की सही संख्या निकालते हुए उस हिसाब से नीतिगत फैसले ले सकेगी। इस सर्वे के जरिए तैयार रिकॉर्ड के आधार पर योजनाओं और सुविधाओं को राज्य के हर आदमी तक पहुंचाने की योजना है।
बिहार में बीते सात जनवरी से जातीय गणना शुरू हुई है। 15 अप्रैल से इसके दूसरे चरण की शुरुआत हो चुकी है। 15 मई तक इसे पूरा करने के बाद रिपोर्ट तैयार की जाएगी। अगर कोर्ट इस पर रोक लगाती है तो गणना के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।