कमतौल देशज टाइम्स: त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने जिस धरती को अपने चरण स्पर्श से पावन किया, वो मिथिला आज भी उन्हीं परंपराओं को जीवंत रखे हुए है। क्या आप जानते हैं, अहल्यास्थान में हर साल विवाह पंचमी पर क्यों उमड़ता है भक्तों का सैलाब और कैसे होता है श्री सीताराम विवाहोत्सव का भव्य आयोजन? पूरी खबर जानने के लिए पढ़ें…
मिथिला और श्रीराम का अटूट संबंध
बिहार के कमतौल स्थित अहल्यास्थान, एक ऐसा तीर्थ स्थल है जिसका संबंध भगवान श्रीराम के जीवन से गहराई से जुड़ा है। यह वही पावन भूमि है, जहां प्रभु श्रीराम के चरण स्पर्श से पत्थर बनी देवी अहल्या का उद्धार हुआ था। कलयुग में यह स्थान एक प्रसिद्ध तीर्थ के रूप में जाना जाता है, जहाँ हर साल विवाह पंचमी के अवसर पर भगवान श्रीराम और जनक दुलारी जानकी का विवाहोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान एक दिवसीय मेले का भी आयोजन होता है, जो दूर-दराज से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
भव्य विवाहोत्सव की तैयारियां जोरों पर
सिया पिया निवास के महंत बजरंगी शरण के मार्गदर्शन में आयोजित होने वाले इस विवाह पंचमी महोत्सव की रौनक देखने लायक होती है। प्रभु श्रीराम और देवी जानकी के विवाह की जीवंत प्रस्तुति भक्तों को भाव-विभोर कर देती है। इस वर्ष भी उत्साह का माहौल है और मंदिर परिसर के साथ-साथ आसपास के घरों में भी लोग इस पावन उत्सव को मनाने की तैयारी में जुटे हैं।
मटकोर रस्म से हुआ श्री गणेश
विवाहोत्सव की परंपराओं के अनुसार, सोमवार को शुभ मटकोर की रस्म पूरी की गई। अहल्यास्थान स्थित अहल्या गहबर के पास बने पोखर पर, जनकनंदिनी जानकी की आरती के साथ मटकोर की रस्म संपन्न हुई। इस दौरान उपस्थित महिला श्रद्धालुओं ने पारंपरिक मंगल गीतों से अहल्यास्थान परिसर को गुंजायमान कर दिया। ‘कहवां के पियर माटी, कहवां के कुदाल हे…’ जैसे पारंपरिक लोकगीतों के साथ मिट्टी कोड़ने की रस्म अदा की गई। बताया गया कि इसी पवित्र मिट्टी का उपयोग मंगलवार को होने वाले श्री सीताराम विवाह की वेदी बनाने के लिए किया जाएगा। अहल्या गहबर से मटकोर के लिए निकलीं महिला श्रद्धालुओं ने मंगलगीत गाते हुए माता जानकी का आह्वान किया और फिर पोखर घाट तक पहुंचीं। पोखर घाट पर महिलाओं ने ‘आंचर स झांपी-झांपी लेल सियदान हे… चलली सलोनी धिया कमला पूजन हे…’ जैसे मधुर गीतों के साथ मटकोर की रस्म को पूरा किया।
आज निकलेगी भव्य बारात शोभायात्रा
विवाहोत्सव का मुख्य आकर्षण मंगलवार को देखने को मिलेगा, जब गाजे-बाजे के साथ भव्य बारात शोभायात्रा निकाली जाएगी। शाम ढलने के साथ द्वार छेकाई और परिछन की रस्में निभाई जाएंगी, जिसके बाद श्री सीताराम विवाह की जीवंत प्रस्तुति होगी। अहल्या गहबर के पुजारी कामेश्वर मिश्रा, जो इस आयोजन में राजा जनक की भूमिका निभाते हैं, ने बताया कि बारात शोभायात्रा के दौरान ‘जय श्रीराम’ और ‘जय जय सियाराम’ के जयघोष से पूरा नगर भक्तिमय हो जाता है। यह महोत्सव न केवल धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करता है, बल्कि मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को भी जीवंत बनाए रखता है।







