

प्रभाष रंजन, दरभंगा। विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजद (RJD) में टिकट वितरण को लेकर असंतोष खुलकर सामने आ गया है। अति पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ से जुड़े करीब 50 नेताओं ने टिकट बंटवारे में उपेक्षा और पक्षपात का आरोप लगाते हुए सामूहिक इस्तीफा दे दिया।
दरभंगा में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में नाराज नेताओं ने कहा कि राजद ने अति पिछड़ा समाज को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन जब प्रतिनिधित्व देने की बारी आई, तो उन्हें दरकिनार कर दिया गया।
“विचारधारा नहीं, चापलूसी और धनबल का बोलबाला” – डॉ. कुमार गौरव
राजद अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. कुमार गौरव ने मीडिया से बात करते हुए कहा,
“हम अति पिछड़ा समाज वर्षों से राजद के लिए खून-पसीना बहा रहे थे, लेकिन टिकट बंटवारे में हमें पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। अब पार्टी में विचारधारा नहीं, बल्कि व्यक्ति-विशेष की चापलूसी और आर्थिक ताकत का बोलबाला है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि दरभंगा जिले के कुछ नेता केवल अपने और अपने परिवार के हित साधने में लगे हैं, जबकि समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जा रही है।
“सर्वे और सामाजिक भागीदारी का वादा सिर्फ भाषणों तक सीमित”
कुमार गौरव ने आगे कहा कि चुनाव से पहले कहा गया था कि टिकट सर्वे रिपोर्ट और सामाजिक भागीदारी के आधार पर दिया जाएगा, लेकिन
“सभी घोषणाएं केवल मंच तक सीमित रह गईं। अति पिछड़ा समाज की हिस्सेदारी की बातें सिर्फ भाषणों में सुनाई दीं।”
भोला सहनी बोले – अब करेंगे सम्मानजनक राजनीति
पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष एवं वरिष्ठ राजद नेता भोला सहनी ने कहा,
“पार्टी में समर्पित और ईमानदार कार्यकर्ताओं का मनोबल लगातार टूट रहा है। अब हम सम्मानजनक राजनीति करेंगे, अपमानजनक समझौते नहीं।”
उन्होंने कहा कि इस तरह का असंतोष आने वाले चुनाव में राजद के प्रदर्शन पर सीधा असर डालेगा।
50 से अधिक नेताओं ने छोड़ी पार्टी की सदस्यता
इस्तीफा देने वालों में प्रमुख नाम शामिल हैं —
भोला सहनी, डॉ. कुमार गौरव, गोपाल लाल देव, राम सुंदर कामत, सुशील सहनी, देवन सहनी, राजाराम लालदेव, प्रीति कुमारी, अजय सहनी, रूपेश कुमार दास, पिंटू यादव, सुनील कुमार महतो समेत 50 से अधिक नेताओं ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दिया।
स्थानीय राजनीतिक हलकों में हलचल
राजद में मचा यह घमासान पार्टी के भीतर गहराते असंतोष को उजागर करता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह इस्तीफा न केवल राजद के लिए चुनौती है, बल्कि महागठबंधन के जातीय समीकरणों पर भी असर डाल सकता है।








