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3 दिसम्बर, 2024
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दरभंगा के जल स्त्रोत में उपजे कृषि क्रांतिकारी धमेंद्र

धर्मेंद्र कुमार दरभंगा के एक ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जिन्होंने वैज्ञानिक तरीके को आत्मसात किया। खेतों में उतारा। पैदावार को नई ऊर्जा दी। खेती के नव उत्थान, फसलों की गुणात्मकता और उसके परिमाणात्मक वृद्धि में एक नई परिभाषा गढ़ दी। उत्पादन और उत्पादकता में इनकी खास तरीके वाली दखल ने खेती को नई ऊंचाईं पर वृद्धि के नए आयाम में एक नवाचार की नई तरकीब की ऐसी विरासत को आगे बढ़ाया है जहां, बाढ़ की आपदा को अवसर में बदलना इन्होंने खुद सीखा, किसानों के लिए आज प्रेरणा के नवद्वार खोले सामने हैं। जहां,

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युवा किसान ने बाढ़ की आपदा को अवसर में बदल दिया (Young Farmer Turns Flood Disaster into Opportunity)। नाम है, धीरेंद्र कुमार।

धीरेंद्र कुमार की जल आधारित कृषि क्रांति

(Dheerendra Kumar’s Water-Based Agriculture Revolution)

दरभंगा जिले के जाले प्रखंड के बेलवाड़ा गांव के एक युवा किसान धीरेंद्र कुमार ने बाढ़ को आपदा से अवसर में बदलने का अद्भुत उदाहरण पेश किया। जब हर साल बाढ़ ने किसानों को नुकसान पहुंचाया, तो उन्होंने जल आधारित कृषि की शुरूआत की और मखाना और सिघाड़े की खेती को अपनाया। इस नवाचार से न केवल बाढ़ से होने वाले नुकसान में कमी आई, बल्कि किसानों को एक नई दिशा भी मिली।

आपदा में अवसर की पहचान

(Recognizing Opportunity in Disaster)
धीरेंद्र कुमार ने कहा, “100 से अधिक किसान इस खेती को अपना चुके हैं। बाढ़ और सुखाड़ से जो किसान खेती छोड़कर दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए चले गए थे, वे भी अब लौटकर जल आधारित कृषि कर रहे हैं।” उनके अनुसार, बाढ़ के दौरान खेतों में 10 से 12 फीट जल जमाव हो जाता था, जिससे खरीफ फसल (धान) नष्ट हो जाती थी। ऐसे में, मखाना और सिघाड़े की खेती ने एक सशक्त विकल्प प्रदान किया।

मखाना और सिघाड़े की खेती का सफलता

(Success of Makhana and Singhara Farming)
धीरेंद्र ने 2019 में मखाना अनुसंधान संस्थान, दरभंगा द्वारा विकसित मखाने के स्वर्ण वैदही प्रभेद की आधे एकड़ में खेती की शुरुआत की। मखाना और सिघाड़े की खेती के साथ-साथ, बाढ़ के पानी में मछलियां भी जमा हो जाती हैं, जिससे अक्टूबर-नवंबर में रबी फसल की बोआई से पहले मछली से भी आय हो जाती है।

मखाना, सिघाड़ा और मछली से ₹1 लाख से अधिक की आय सिर्फ खरीफ सीजन में

उन्होंने बताया कि एक एकड़ में मखाना, सिघाड़ा और मछली से ₹1 लाख से अधिक की आय सिर्फ खरीफ सीजन में हो जाती है। वहीं, उसी खेत में रबी सीजन में गेहूँ, दलहन, तिलहन और मवेशी के लिए हरे चारे की फसल भी उगाई जाती है। इस प्रकार, यह एक सस्टेनेबल और लाभकारी कृषि मॉडल बन चुका है।

संवेदनशीलता और किसानों के लिए प्रेरणा

(Sensitivity and Inspiration for Farmers)
धीरेन्द्र ने कहा कि बाढ़ और महामारी के दौरान, जब लोग बेरोजगार होकर गाँव लौट आए थे, तो उन्होंने मखाना की खेती करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें प्रशिक्षण दिया। बिहार सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी जुटाकर, उन्होंने किसानों को नई तकनीकों और जैविक खेती के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि वह खुद जैविक खाद और कीटनाशक का उपयोग करते हैं और किसानों को भी इससे अवगत कराते हैं।

कृषि में मिल चुकी उपलब्धियां

(Achievements in Agriculture)
धीरेंद्र ने कृषि विज्ञान में पीएचडी की है और पिछले 6 वर्षों से कृषि में नये प्रयोग कर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (नई दिल्ली), डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (समस्तीपुर) सहित अन्य कई संस्थानों से पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि वह विलुप्त हो रही पुराने अनाजों को भी संरक्षित कर रहे हैं और बंजर जमीन पर बांस की खेती और श्री अन्न की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

निष्कर्ष:
धीरेंद्र कुमार का प्रयास यह दिखाता है कि सही दिशा और नवाचार से किसी भी आपदा को अवसर में बदला जा सकता है। उनका अनुभव न केवल किसानों के लिए एक प्रेरणा है, बल्कि यह भी साबित करता है कि जल आधारित कृषि और प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग कितनी सफलता की कुंजी बन सकता है।

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