कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनका परिचय देने में किसी विशेष पहचान की आवश्यकता नहीं होती। ना ही, उन्हें शब्दों में बांधा जा सकता। वह भाषा, साहित्य, स्वर व कविता से परे होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी का व्यक्तित्व उन्हीं में से एक था। यह बात चेतना समिति,पटना के अध्यक्ष ई. विवेकानंद झा ने बुधवार को भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 96 वें जन्म दिवस के अवसर पर विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित जन्मदिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कही।
देश की मान-प्रतिष्ठा व संस्कृति के रक्षक भारत मां के सपूत को समस्त हाथों ने किया नमन
दरभंगा, देशज न्यूज। चेतना समिति, पटना के अध्यक्ष ई. विवेकानंद झा ने कहा, राजनेता अटल का मानवीय चेतना संपन्न व्यक्तित्व काव्य जगत की ओर से राजनीति को दिया गया एक अनमोल उपहार था। नाम के अनुरूप विकट आंधी-तूफान जन्य परिस्थितियों से जूझकर देश की मान-प्रतिष्ठा व संस्कृति के रक्षक भारत मां के इस सपूत पर समस्त भारतवासियों को आज भी गर्व है।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ. अजीत कुमार चौधरी की अध्यक्षता में एमएमटीएम कॉलेज के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मिथिला मैथिली के विकास में वाजपेई के योगदानों की विस्तार से चर्चा करते हुए उन्हें मिथिला-मैथिली का सच्चा हितैषी बताया।
हम मिथिलावासियों को बनाया गर्व व सम्मान का हकदार
डॉ. अजीत कुमार चौधरी ने कहा, हम मिथिलावासियों के लिए यह अत्यन्त गर्व का विषय है, जिस सदन के पहले संविधान संशोधन प्रस्ताव के तहत पंडित नेहरू ने मिथिला में जमीनदारी उन्मूलन का प्रस्ताव लाया था, उसी सदन के 100वें संशोधन के रूप में अटल जी की सरकार ने करोड़ों मिथिलावासी के मां की भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर गौरवशाली उपहार प्रदान किया। उन्होंने अटल के सपनों का मिथिला बनाने के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन को जरूरी बताया।
सागर से हिलोरें लेने वाला व्यक्तितत्व था अटल का
प्रो. जीवकांत मिश्र ने कहा, वास्तव में सागर की गहराइयों में हिलोरें लेने वाला, आकाश की ऊंचाइयों को छू लेने वाला अटलजी का बहु आयामी व्यक्तित्व एक साथ कवि, लेखक, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ सरीखे विविध आयामों को अपने में समेटे शोभायमान था।सीनेट सदस्य डॉ. रामसुभग चौधरी ने वाजपेयी को भारतीय दर्शन व सांस्कृतिक चेतना को समर्पित व्यक्तित्व बताते हुए मिथिला को सब कुछ देने की चाहत रखने वाला महान व्यक्ति बताया।
थे राजनीति के मर्यादा पुरुषोत्तम
डॉ. राज किशोर झा ने उन्हें राजनीति का मर्यादा पुरुषोत्तम बताते कहा, सत्ता के खेल में राष्ट्रीय एकता का बिखराव उन्हें कतई पसंद नहीं था।
एमएमटीएम कॉलेज के प्रधानाचार्य डाॅ. उदय कांत मिश्र ने कहा, छोटी सी अवधि में ही उन्होंने देश के नाम व मिथिला की मान के लिए जो कार्य किए, इतिहास में निर्विवाद रूप से स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। विनोद कुमार झा ने संविधानकी आठवीं अनुसूची में शामिल होने के करीब 17 साल बीत जाने के बाद भी मैथिली भाषा में प्राथमिक शिक्षा नहीं शुरू होने पर चिंता जाहिर की।
अटल बिहारी सब पर भारी, थिकाह मैथिलीक शान…
प्रो. चन्द्रमोहन झा पड़वा ने मैथिली में लिखी अपनी कविता ‘अटल बिहारी सब पर भारी, थिकाह मैथिलीक शान…के माध्यम से उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। प्रो. चन्द्रशेखर झा बूढ़ा भाई ने मैथिली को राज-काज की भाषा बनाए जाने पर बल दिया। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. अजीत कुमार चौधरी ने कहा कि अनेकता में एकता का संगम अटल जी के व्यक्तित्व की पहचान थी। इनके व्यक्तित्व में कभी उनका कवि रूप मुखरित हो उठता, तो कभी दार्शनिक रूप। कभी कठोर अनुशासन प्रिय शिक्षक के रूप में दिखते, तो कभी आज्ञाकारी कर्तव्य परायण छात्र के रूप में। एक योग्य राजनीतिज्ञ होने का प्रमाण उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ सरीखे खिताबों से मिल चुका था। यही कारण था, उम्र के लंबे दहलीज पर पहुंचने के बाद भी उनका सफर समाप्त नहीं हुआ। उनके व्यक्तित्व का निखार कभी थमने का नाम नहीं लिया। वह निरंतर नए-नए रूप बदलकर, नए-नए लक्ष्य लेकर विकास की ओर उस झरने की तरह बढ़ते रहे, जिसका उद्देश्य था-
चलना है केवल चलना, जीवन चलता ही रहता है!
रुक जाना ही मर जाना है, निर्झर यह झर झर कहता है!!’
संस्थान के मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा के संचालन में आयोजित जन्मदिवस समारोह में धन्यवाद ज्ञापन कोषाध्यक्ष डॉ. गणेश कांत झा ने किया। समारोह में नन्द कुमार झा, हरि किशोर चौधरी, आशीष चौधरी, जय नारायण साह, गनौर पासवान, मिथिलेश झा की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।