किसानों ने झूझलाते हुए अपनी परेशानी को कृषि विशेषज्ञों के सामने व्यक्त, कर आशा की उम्मीद लिए बैठे थे। उन लोगों ने कहा कि एक तो गर्मी की वजह से खेतों में नमी बिल्कुल भी नहीं है। वहीं, खरपतवार भी फसल को बर्बाद करने में जरा भी पीछे नहीं हट रहे हैं।
इस आशय की बातें कृषि विज्ञान केंद्र जाले के पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. गौतम कुणाल ने जलवायु अनुकूल खेती परियोजना अंतर्गत चयनित ब्रह्मपुर गांव में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा।
इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य खरीफ फसलों में लगने वाली खरपतवारों की पहचान तथा उसके नियंत्रण के बारे में कृषकों को बताना था। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कृषकों को संबोधित करते कहा कि जहां खेती में मौसम परिवर्तन, रोग तथा कीट से नुकसान उठाना पड़ता है।
वहीं, खरपतवार भी किसानों के लिए एक प्रमुख्य समस्या बन गया है। यह न केवल मिट्टी से फसल के साथ पौषक तत्वों का समान रूप से दोहन करता है बल्कि खरपतवार का असर फसल के उत्पादन पर भी देखने को मिलता है।
कुछ खरपतवार फसल की बुवाई से पहले उग आते हैं तो कुछ खरपतवार फसल के बुवाई के बाद फसल के साथ अंकुरित होते है। अतः इसके नियंत्रण हेतु उन्होंने किसानों से अपील की है कि धान रोपाई के दो-तीन दिन के अंदर खरपतवार नियंत्रित करने के लिये प्रिटीलाक्लोर दवा 1250 मिलि प्रति हेक्टेयर के दर से छिड़काव करें।
साथ हीं धान की फसल में चौड़ी पत्ते वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये रोपाई के दो-तीन दिन के अंदर पाइरोजोसल्फ्यूरॉन दवा 80-100 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से उपयोग में लाएं।
यदि दो-तीन दिन के अंदर खरपतवार नाशी दवा उपयोग न कर पाया हो तो घास कुल के मौथा तथा पत्ते वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये धान रोपाई के 15-20 दिन के अंदर विसपायरिवेक सोडियम 100 मिलि. दवा प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ में उपयोग करें।