दरभंगा, देशज टाइम्स टीम। ईद-उल-अजहा के अवसर पर शहर के विभिन्न मस्जिदों में लोगों के द्वारा कुर्बानी का नमाज अदा किया गया। इस अवसर पर लोगों ने भी एक दूसरे को ईद उल अजहा की बधाई दी। वहीं, सामाजिक सौहार्द कायम रखने के लिए दुआ मांगी। इस अवसर पर बाकरगंज, मिर्जा खां तालाब, बेंता, ईमामबाड़ी समेत कई स्थानों पर लोगों ने नमाज अदा कर एक-दूसरे को ईद-उल-अजहा की बधाई दी।
वहीं, जाले देशज टाइम्स ब्यूरो के अनुसार, जाले के स्थानीय नगर के पुरानी ईदगाह एवम अशरफ नगर स्थित नूरी ईदगाह में मुसलमान भाइयों ने ईद उल अजहा की नमाज अदा की। पुरानी ईदगाह में जहां मुफ्ती मौलाना मुजफ्फर रहमानी ने, वहीं नूरी ईदगाह में मुफ्ती गुलाम मोक्तदीर खान ने ईद नमाज अदा करवाई।
इस मौके पर इस मौके पर नमाज के बाद अपनी खुदवा देते हुए मुफ्ती मो. आमीर मजहरी ने कहा कि इस्लाम मजहब में अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी दी जाती है। मान्यताओं के अनुसार हजरत मोहम्मद ने एक दिन इब्राहिम के सपने में आकर अपनी प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी।
इब्राहिम अपने बेटे को बहुत चाहते थे, उन्होंने बेटे की कुर्बानी देने का निश्चय किया, हालांकि कुर्बानी में भावनाएं बीच में न आ जाएं इसलिए आंखों पर पट्टी बांध दी। अल्लाह का हुक्म मानकर उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी दे दी। लेकिन, आंख खोलने पर उन्होंने पाया कि उनका बेटा सही सलामत है। और, एक दुम्बा (अरब में भेड़ के समान जानवर) पड़ा है। तब से बकरे की कुर्बानी देने प्रचलन शुरू हो गया।
ईद-उल-अजहा का दिन फर्ज-ए-कुर्बानी का दिन होता है। इसके जरिए पैगाम दिया जाता है कि मुस्लिम अपने दिल के करीब रहने वाली वस्तु भी दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं, इस्लाम में गरीबों और जरूरतमंदों का बहुत ध्यान रखने की परंपरा है।
ईद-उल-अजहा के दिन कुर्बानी के गोश्त को गरीबों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। बेशक अल्लाह दिलों के हाल जानता है और वह खूब समझता है कि बंदा जो कुर्बानी दे रहा है, उसके पीछे उसकी क्या नीयत है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करेगा तो यकीनन वह अल्लाह की रजा हासिल करेगा, लेकिन अगर कुर्बानी करने में दिखावा या तकब्बुर आ गया तो उसका सवाब जाता रहेगा। कुर्बानी इज्जत के लिए नहीं की जाए, बल्कि इसे अल्लाह की इबादत समझकर किया जाए। अल्लाह हमें और आपको कहने से ज्यादा अमल की तौफीक दे।