दरभंगा। तालाब बचाओ अभियान के संयोजक नारायण जी चौधरी ने लनामिवि के कुलपति को खुला पत्र भेजा है। इसमें सौंदर्यीकरण के नाम पर जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की हत्या नहीं करने का अनुरोध है।
संयोजक श्री चौधरी ने का है कि यूरोपियन गेस्ट हाउस के पूरब स्थित तालाब को जिस तरह से सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है, यह जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem) की ह्त्या है। इसे अविलंब रोका जाए। कुलपति और रजिस्टार को भेजे पत्र में श्री चौधरी ने बिंदुवार अपनी बात रखी है। इसमें उन्होंने कहा है,
1. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा तैयार किया गया “ नेशनल प्लान फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ एक्वेटिक इकोसिस्टम गाइडलाइन्स – 2019” (National Plan for Conservation of Aquatic Ecosystems – NPCA)।
2. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के आलोक में सेंट्रल पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) द्वरा तैयार किया गया गाइडलाइन्स “Indicative Guidelines for Restoration of Water Bodies” (in compliance to Hon’ble NGT Order dated 10.05.2019 in M.A.No. 26/2019 in OA.No. 325 of 2015)।
संयोजक श्री चौधरी ने कहा है, उपरोक्त गाइडलाइन्स, जो पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है, जिसे आप गूगल पर सर्च कर आसानी से देख सकते हैं | इन गाइडलाइन्स के मुख्य उदेश्य, दिशा-निर्देश, कार्यक्रम एवं इसके मूल भावना के सन्दर्भ में आपका ध्यान आकर्षित करते हुए तालाब के संरचना के एक महत्वपूर्ण अंग, जिसे मिथिला में ‘कछैर या कछार’ कहते हैं, की ओर आकर्षित करना चाहता हूं, जो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystems) को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने में अहम् भूमिका निभाता है|
तालाब के किनारे से इसके बेड/पेट तक उतरने वाल जो ढलान चारो तरफ होता है, उसे तालाब का कछार कहते हैं | तालाब का कछार वह जगह होता है जिसमे इसके पानी का स्तर वर्षा के समय उच्चतम रहता है और जून के समय में निम्नतम रहता है। अर्थात कछार तालाब का वह स्थान होता है। इसमें इसके पानी के स्तर का उतार-चढाव बिभिन्न ऋतुओं में अलग-अलग होता रहता है।
यह कछार सैकड़ों तरह के जलीय जीवों का निवास स्थान और प्रजनन स्थल होता है | मिथिला के कोई भी आम आदमी आपको बता सकता है कि कछार में घोंघा, सितुआ, डोका, केकड़ा, कछुआ, चाली/अर्थवर्म, घुरघुरा सहित अनेकों तरह के कीड़े-मकोड़े का निवास स्थल और प्रजनन स्थल होता है।
इसके साथ-साथ, पोठी, मारा, देढ्बा, चेंगा, गरई, सिंगी, मांगुर, गैंची, ढलई, भुल्ला, कबई, कोतरी, झींगा, चेल्हा, चना, लट्टा, सौरा, भोंरा आदि दर्जनों मछलियों का भी निवास स्थल और प्रजनन जगह कछार ही होता है | इसके अलावे, सैकड़ों तरह के सूक्ष्म जीवों का भी निवास और प्रजनन स्थल तालाब के कछार होता है | इसीलिए यह कछार तालाब/जलाशय के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem) को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कई तरह के चिड़ियां भी अपने भोजन के लिए तालाब और इसके कछार के जिव-जंतुओं पर निर्भर होते हैं | मिथिला में तालाब के कछार में घास लगाने (बायोलॉजिकल फेन्सिंग) और इसके भिंडा/किनारे में पेड़-पौधा लगाने की परम्परा रही है। इअके अलावा, तालाब के किनारे पक्का घाट और छोटा सा मंदिर भी बनाने की परम्परा रही है।
श्री चौधरी ने कहा, विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से अपने इस तालाब के सौन्दर्यीकरण के नाम पर इसके कछार के समस्त एरिया पर लगभग 15 फिट चौड़ा और लगभग 5 फिट तालाब के बेड/पेट में ईट और सीमेंट-कंक्रीट का ढलाई करने की योजना है, जैसा की स्थानीय लोगों ने बताया।
उन्होंने कहा, अभी जिस तरह से इस तालाब का सौन्दर्यीकरण करने की योजना है, उससे इस तालाब के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की ह्त्या होगी | एसा प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने “जल, जलाशय और नदी’ के एक्सपर्ट, जो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के जानकार होते हैं, से बिना सुझाव लिए ही सौन्दर्यीकरण की योजना/डिजाइन बनाया है।
संयोजक श्री चौधरी के अनुसार, विश्वविद्यालय का परिसर एक एतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर वाला परिसर है | इस परिसर के अंतर्गत लगभग 800 वर्ष पुराना एक विशालकाय झिलनुमा तालाब है, जिसे मिथिला के कर्णाट वंशीय राजाओं की ओर से बनाया गया है।
दोनों विश्वविद्यालयों के परिसर और इसके भवन का निर्माण खंडवला कुल के राजाओं की ओर से बनाया गया है। खंडवला कुल के राजाओं द्वारा 8 या 9 तालाबों का निर्माण भी इस परिसर में किया गया है, जो सभी आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए थे और इसीलिए इस परिसर में कभी भी जल-जमाव की समस्या नहीं होती थी।
श्री चौधरी ने कहा, हम उम्मीद करते हैं हमारा विश्वविद्यालय (LNMU) के पदाधिकारीगण पर्यावरण, जैव-विविधता और पारिस्थितिकी से संबंधित सरकार के गाइडलाइन्स, दिशा निर्देश और माननीय न्यायलय के आदेश की अद्यतन जानकारी (latest information) जरुर रखते होंगे |
उन्होंने विनम्र अनुरोध के साथ विवि के दोनों कुलपति व रजिस्टार से अनुरोध किया है…
1) न्यायालय, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश से CPCB की ओर से बनाए गए गाइडलाइन्स एवं जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystems) के रक्षार्थ भारत सरकार की ओर से बनाए गए गाइडलाइन्स एवं दिशा निर्देशों की सम्मान करते हुए तालाब पर अभी किये जा रहे विनाशकारी सौन्दर्यीकरण पर अविलम्ब रोक लगायेंगे साथ ही अपने इस तालाब के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के रक्षार्थ एवं सुधारात्मक कार्य के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे।|
2) सांस्कृतिक तालाब के सौन्दर्यीकरण का डिजाइन कभी भी ‘स्वीमिंग पूल’ के कांसेप्ट/डिजाइन और तकनिकी से न किया जाए | जिस तरह से अभी सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है, उससे यह तालाब, तालाब न रहकर एक बड़ा स्वीमिंग पूल बन जाएगा ! तालाब और स्वीमिंग पूल – दोनों दो चीजें हैं, दोनों की संरचाएं, आवश्यकताएं, भूमिका और उद्येश्य भी अलग-अलग होते हैं।
3) तालाब हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर है | मिथिला में तालाब का निर्माण समस्त जीवों, जिसमें मनुष्य के अलावा, पशु, पक्षी, कीड़े-मकोड़े एवं जलीय जीव भी शामिल हैं, के कल्याण, बल प्राप्ति एवं स्नानादि के उदेश्य से किया जाता है। किसी भी तरागोत्सर्ग पद्धति में इस विषय पर विस्तार से देखा जा सकता है | अतः हमारे इस (तालाब) सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर की सुरक्षा, संरक्षण और पुनरुद्धार (RRR) की योजना बनाने में पर्यावरण, जैव-विविधता एवं पारिस्थितिकी के प्रति संवेदनशील हों।
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