दरभंगा जिले के केवटी थाना क्षेत्र के रनवे निवासी मुकेश लाल। इनकी सोच, समझ और तरक्की की राह चुनने की आदत ने दरभंगा समेत केवटी को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है जहां बिहार आज टकटकी लगाए, बांहें फैलाए खड़ा है। बिहार चाहता है, सरकार की मंशा है यहां उद्योग लगे।
और, इसी सोच को जमीं पर उतारकर मुकेश ने एक ऐसी उपलब्धि की नींव डाली है, जो रोजगार, आर्थिक संपन्नता, मजबूती की राह खुद तलाश लेता है।
मुकेश ने दरभंगा के केवटी में जींस पेंट, ब्लेजर बनाने के उद्योग को स्थापित कर आज इलाके के 50 से 60 लोगों रोजगार से जोड़ दिया है। इसमें आधी क्षेत्र की महिलाएं हैं। तय है, जब महिलाएं अर्थ उर्पाजन की बाट जोहने लगी है, घर में सुख-शांत-समृद्धि खुद चली आएगी। यही हैं, पेशे से टेक्सटाइल इंजीनियर मुकेश लाल।
मुकेश ने छोटे से गांव में अपने मजबूत इरादे के साथ अपने साथ साथ गांव के 60 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। पेशे से टेक्सटाइल इंजीनियर मुकेश अपने गांव में ही स्वयं का कपड़ा उद्याेग का फैक्ट्री लगा दिया है। इसमे उन्होंने 60 लोगों को नौकरी दे रखी है।
जानकारी के अनुसार, दरभंगा के केवटी प्रखंड के केवटी रनवे के निवासी हैं मुकेश लाल। इनकी उम्र 38 साल है। उनका विजन जाॅब सिकर नहीं, जाॅब मेकर बनने का है। देश के टेक्सटाइल हब लुधियाना, गुरुग्राम, सूरत व बेंगलुरू की नामी गिरामी कपड़ा कंपनियाें में काम किए हैं।
यहां के कपड़ा कंपनियाें में दरभंगा व मुधबनी के अधिकांश महिला व पुरुष काम करते देखे जाते थे। उनकी परेशानी, उनकी लाचारी व घर परिवार छाेड़कर पलायन की पीड़ा काे देखते हुए मुकेश ने टेक्सटाइल इंजीनियर का पद छाेड़ गांव में ही आकर स्वयं का कपड़ा उद्याेग खाेलने का निर्णय किया। उन्हाेंने कहा कि बिहार के मजदूराें का पलायन काे राेकने के लिए उन्हाेंने यह फैसला लिया। उनका यह निर्णय बेहतर साबित हो रहा है।
2019 में गांव आकर पिता की सहमति से महज 10 मजदूराें के बलबूते करीब 20 से 25 लाख रुपए लगाकर कपड़ा उद्याेग खड़ा किया था। उनकी कंपनी का नाम एसएमवी गार्मेंट है। कड़ी मेहनत की बदाैलत आज उनकी कंपनी में 50 से 60 मजदूर काम कर रहे हैं।
इसमें 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं। उनका सलाना टर्न ओवर करीब एक कराेड़ रुपए हाे गया है। फिलहाल उनकी कंपनी में शर्ट व ब्लेजर बनाए जाते हैं। गुरुग्राम की एक कंपनी से टाइअप कर जिंस बनाया जाता है। उनकी कंपनी में तैयार शर्ट व ब्लेजर का मार्केट दरभंगा, मधुबनी, पटना के अलावे बंगलुरू, चेन्नई, सेलम आदि शहराें में है।
शर्ट व ब्लेजर के अलावा टी शर्ट व जिंस पैंट बनाने की तैयारी चल रही मुकेश के बताया कि यहां मजदूराें की कमी नहीं है। उनकी इच्छा है कि इस क्षेत्र से 75 से 80 प्रतिशत मजदूराें काे मजदूरी के लिए पलायन नहीं करना पड़े। मजदूराें की संख्या 200 से 250 करने की याेजना है।
सालाना टर्नओवर 5 से 6 कराेड़ करने का लक्ष्य है। शर्ट व ब्लेजर के अलावा टी-शर्ट व जिंस पैंट बनाने की तैयारी चल रही है। मुकेश ने बताया कि उन्हाेंने 2012 में दिल्ली में निफ्ट से टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।
2012 से 2019 के दाैरान देश के विभिन्न काेने में कपड़ा कंपनियाें में इंडस्ट्रीयल इंजीनियर के रूप में काम किया। इस दाैरान देखा कि इन कंपनियाें में मजदूरों के रूप में दरभंगा व मधुबनी के अधिक महिला व पुरुष काम कर रहे थे। उनकी कई समस्याएं दिखीं।
उन्होंने कहा कि अपने ही क्षेत्र में कपड़ा उद्याेग हाेता ताे पलायन नहीं करना पड़ता। उसी दाैरान उन्हाेंने गांव में ही अपना कपड़ा उद्याेग खड़ा करने का संकल्प लिया। 2019 में प्राइवेट कंपनियाें में काम छाेड़ कर गांव आकर अपनी कपड़ा कंपनी खाेल दी।