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23 दिसम्बर, 2024
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दरभंगा का सिपाही 244 लखेंद्र चौधरी…17 सालों से पड़ें हैं कोमा में…फर्ज पर कुर्बान होने की मिल रही सजा…शरीर में हरकत नहीं, प्रशासन जाग नहीं रहा…सरकार सोई है…जगी है तो सिर्फ लखींद्र चौधरी की पत्नी सीमा जो सावित्री बनकर सत्यवान की सांसें थामें बैठी है…

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दरभंगा, देशज टाइम्स अपराध ब्यूरो। दरभंगा पुलिस का अमानवीय चेहरा कहें या सरकार की संवेदनशीलता की शून्यता, बड़ा ही सिस्टम का यह भयावह सच है, जहां एक सिपाही अपने कर्त्तव्य पथ पर कुर्बान हो रहा है, तिल-तिल मर रहा है, मगर यह सिस्टम है कि खामोश है। सरकार चुप है कि उसे मतलब नहीं, पुलिस के आलाधिकारी हैं कि उन्हें जो जिंदा है उसी से काम चलाना आता है, जो सिस्टम में मर चुका हो उसे जिंदा रहने का भला हक किसने दिया…मरो अरे तुम जिंदा कैसे हो…17 सालों से कोमा में रहकर तुम सर्डांध सिस्टम की हकीकत क्यों बने हो,

मगर मेरा नाम है सिपाही 244 लखेंद्र चौधरी…मैं तेरे हर उस सच्चाई को दुनिया के सामने लाकर रहूंगा जहां तेरी लंका में सब रावण बने बैठे हैं…आइए सुनाते ही नहीं, हकीकत से पर्दा उठाते हैं, जहां बिहार का यह जाबांज सिपाही अपनी पत्नी के गहने और जेवर बेचकर जिंदा है जो सिर्फ इसलिए कि कभी तो इस तंत्र को, इस खोखले प्रशासन की नींद टूटेगी…सरकार जागेगी और फिर कोई नया लखींद्र चौधरी इस सड़ती पुलिसिया व्यवस्था में सुकून की सांसें ले पाएगा…  

हकीकत यही है सुनिए बिहार के व्यवस्थापक: दरभंगा का सिपाही 244 लखेंद्र चौधरी…17 सालों से पड़ा है कोमा में…फर्ज पर कुर्बान होने की मिल रही सजा…मौत आती नहीं, प्रशासन जाग नहीं रहा…सरकार सोई है…जगी है तो सिर्फ लखींद्र चौधरी की पत्नी सीमा जो सावित्री बनकर सत्यवान की सांसें थामें बैठी है…

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“ईश्वर के घर देर है लेकिन अंधेर नहीं” यह कहावत आपने सुनी होगी। लेकिन, मैं कहता हूं कि ईश्वर के घर भी अंधेर है। वरना दरभंगा जिला बल के एक सिपाही के साथ ऐसा अन्याय नहीं होता। सरकार गला फाड़-फाड़ कर कहती है कि महादलितों के उत्थान के लिये सरकार तत्पर है, सरकार गंभीर है।

लेकिन,दरभंगा जिले के एक महादलित जाति के सिपाही के साथ विभाग समेत सरकार अन्याय कर रही है। घर में एक दाना नहीं है, बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं हैं। ऐसे में, कौन ऐसे परिवार की जिम्मेदारी लेगा? यह सरकार से भी सवाल है? और, पुलिस के आलाधिकारियों से भी।

सिपाही 244 लखेंद्र चौधरी का दोष क्या है? दोष है तो बस इतना कि 17 साल पहले चुनाव में उसे कोलकाता से वैलेट पेपर लाने का उन्हें आदेश मिला था। जब वैलेट पेपर लेकर आ रहे थे तो गिरियक थाना क्षेत्र में उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। उन्हें सिर में चोट लगी, काफी जख्मी भी हुए। इस घटना के बाद वह कोमा में चले गए।

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इलाज के अभाव में आज भी वह कोमा में हैं। यही नहीं, पैर में लकवा भी मार दिया। वह सुन नहीं सकते, बोल नहीं सकते, खड़ा नहीं हो सकते। फिर, ऐसे में डयूटी कैसे करेेंगे।

ऐसे में, दरभंगा के एसएसपी ने उनके वेतन पर रोक लगाते हुये मानवता को तार-तार कर दिया। यही नहीं, सरकारी तमाम नियमों की भी धज्जियां उड़ गईं।

एसएसपी का कहना है कि डयूटी नहीं करने की वजह से उनके वेतन पर रोक लगा दी गई है? ऐसे में, सवाल उठता है कि सिपाही लखेंद्र चौधरी की आखिर गलती क्या है?

चुनाव के दौरान सरकारी आदेश का पालन करते हुए ड्यूटी के दौरान उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त होती है। और, इसके बाद इलाज के अभाव में वह नारकीय जीवन जी रहे हैं।

सरकार को या जिला प्रशासन को शुरुआती दौर में ही सही से इलाज कराना चाहिये था। लेकिन, सरकार ने उनका इलाज नहीं कराया। इलाज के नाम पर महज दस हजार रुपये बहुत पहले विभाग ने दिया था। उनकी पत्नी सीमा देवी ने जैसे तैसे इलाज कराकर आज भी अपने पति को जिंदा रखें हुए हैं।

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ऐसे साहसी महिला को शत-शत प्रणाम करता हूं जो अपने पति की सेवा में अपनी दुनियां आज तक लुटाते आई हैं। जमीन बेच दिया। गहने बेच दिए। लेकिन, अपने पति को जिंदा रखें हुए हैं। पति आज भी कोमा में हैं। कोई सुध बुध नहीं है। एक सहारा था वेतन का वह भी दरभंगा एसएसपी ने उससे छीन लिया।

वेतन में भी बढ़ोतरी सरकार ने नहीं की थी। अब तक उसे पुराना निर्धारित वेतन मिल रहा था वह भी बंद हो गया। कैसे चलेगा उनका घर, कैसे होगी बच्चों की पढ़ाई, यह अहम सवाल है?

17 वर्षों से कोमा में चल रहें सिपाही आज भी कोमा में हैं। फिर वह ड्यूटी कैसे करेंगे?उनकी पत्नी सीमा ने इस बाबत आईजी, डीजीपी, मानवाधिकार आयोग, मुख्यमंत्री आदि कई जगहों पर आवेदन देकर न्याय की गुहार लगा चुकी हैं।

लेकिन, उस महादलित सिपाही को न्याय देने वाला कोई नहीं है। उसका यह हाल ड्यूटी करने के दौरान हुआ है। ऐसे में, सरकार को संज्ञान लेना चाहिये ताकि इस उजड़े परिवार को न्याय मिल सके।

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