दरभंगा देशज टाइम्स। सदियों से अपनी संस्कृति, ज्ञान और भाषा के लिए विख्यात मिथिला, आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। यह एक ऐसा युद्ध है जहाँ शब्दों के तीर और विचारों के शस्त्र से एक अलग पहचान की माँग की जा रही है। Mithila State: पुनौराधाम में 21वें अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन में मिथिला, मैथिली और मैथिल के सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन की अनिवार्यता पर जोर दिया गया।
पृथक Mithila State: क्यों है विकास के लिए अनिवार्य?
मैथिली संसार की संभवत: अकेली ऐसी भाषा है, जिसके आदि काल के प्रामाणिक एवं ठोस गद्य साहित्य उपलब्ध हैं। इसे संवैधानिक दर्जा हासिल हुए 23 साल बीतने के बावजूद यह अब तक न तो प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बन पाई है और न ही इसे राजकाज में यथोचित स्थान मिल पाया है। यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। रघुवर मिश्र ने मंगलवार को पुनौराधाम में आयोजित 21वें अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन में ‘मिथिला, मैथिली, मैथिलक उत्कर्ष’ विषयक विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए यह बात कही। उन्होंने रेखांकित किया कि मैथिली भाषा में एमए, पीएचडी, डीलिट आदि की उपाधि मिलती है, लेकिन प्राथमिक शिक्षा अब तक मैथिली में नहीं होना और सीधे उच्च शिक्षा में ही मैथिली की पढ़ाई शुरू होना हैरतअंगेज है। यह चिंताजनक है कि इतने समृद्ध मैथिली साहित्य के बावजूद यह प्रारंभिक स्तर पर अपनी पहुँच नहीं बना पाई है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
इससे पहले अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महेंद्र नारायण राम ने कहा कि गुणात्मक रूप से मिथिला की शिक्षा व्यवस्था का उत्कर्ष हमेशा से मुखर रहा है, लेकिन आज की स्थिति थोड़ी भिन्न है। उन्होंने मैथिली के संवैधानिक अधिकार की प्राप्ति के लिए सांगठनिक प्रयास को तेज किए जाने को जरूरी बताते हुए कहा कि समय के साथ सिर्फ घोषणा मात्र से आह्लादित होने से हमें बचना होगा। प्रवीण कुमार झा ने चिंता जताई कि आपसी मतभेद के कारण अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए नए सिपाही तैयार नहीं हो पा रहे हैं। उन्होंने मिथिला, मैथिली और मैथिल के सर्वांगीण विकास के लिए घर-घर में जन जागरण करने को आवश्यक बताते हुए इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि संस्थानों की बाढ़-सी आने के बावजूद उनका मूल उद्देश्य से भटकना चिंताजनक है।
मैथिली भाषा: संवैधानिक दर्जा मिला, पर उत्थान अधूरा
मणिकांत झा ने बिहार की एकमात्र संवैधानिक भाषा मैथिली के यथोचित विकास के लिए गठित मैथिली अकादमी के बंद होने की यथास्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यदि हम समय पर नहीं चेते तो मिथिला, मैथिली व मैथिल के उत्कर्ष की अधोगति होना अवश्यंभावी है। डॉ. ममता ठाकुर ने कहा कि मैथिली के संरक्षण व संवर्धन के लिए सबसे पहले इसे राजनीतिक कुचक्र के चंगुल से निकालना होगा। उसके बाद अपनी शक्ति की पहचान करानी होगी। केदार नाथ कुमर ने इतिहास और भूगोल के सहारे नया वर्तमान बनाने की बात करते हुए कहा कि हमें सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वोट की राजनीति में सक्रियता बढ़ानी होगी। साथ ही हमें अच्छे-बुरे की समय रहते पहचान करनी होगी। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
जन जागरण और राजनीतिक सक्रियता की जरूरत
नीलम झा ने अपने संबोधन में नेपाल एवं भारत में मैथिली की यथास्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण किया। उन्होंने बताया कि नेपाल में इसकी स्थिति भारत से थोड़ी बेहतर है, जो वहाँ की जनता के जागरूक होने का नतीजा है। अखिल भारतीय मैथिली सम्मेलन के महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मिथिला, मैथिली एवं मैथिल के उत्कर्ष को बनाए रखने व इसके सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन को जरूरी बताया। मणिकांत झा के संचालन में आयोजित विचार गोष्ठी में धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. गणेश कांत झा ने किया। इस अवसर पर डॉ. महानंद ठाकुर, पं. कमलाकांत झा, डॉ. दिलीप कुमार झा, हरेराम झा, शीतलाम्बर झा, संतोष कुमार झा, सुधीर चंद्र मिश्र, विनोद कुमार झा, प्रो. चन्द्र शेखर झा बूढ़ा भाई, नवल किशोर झा, डॉ. आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

